आजादी का अमृत महोत्सव : अनुग्रह नारायण सिंह का जन्म औरंगाबाद जिले के पईअवा गांव में 18 जून, 1887 को हुआ था. उनके पिता ठाकुर विशेश्वर दयाल सिंह इलाके के जाने-माने जमींदार थे. शुरुआती शिक्षा पूरी करने के बाद अनुग्रह नारायण. पटना कलिज में देखिला लिया, पटना कॉलेज में पढ़ाई के दौरान वह अलग ही शख्सियत के रूप में उभरे.
ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी को खत्म करने के लिए युवा अनुग्रह का मन व्याकुल हो गया
इन भाषणों का उनके व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ा. इसके बाद ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी को खत्म करने के लिए युवा अनुग्रह का मन व्याकुल हो गया. इस तरह वह स्वतंत्रता आंदोलनों में सक्रिय तौर पर शामिल होने की तैयारी में जुट गये. ‘बिहार छात्र सम्मेलन’ नामक संस्था का गठन हुआ, जिसमें राजेंद्र बाबू जैसे मेधावी छात्रों को कार्य व नेतृत्व करने का मौका मिला 1914 में इतिहास से एमर करने के बाद उन्होंने ली की परीक्षा पस की, फिर वह भागलपुर के टीएनबी कॉलेज में इतिहास के प्रोफेसर बने. 1916 में उन्होंने कॉलेज की नौकरी छोड़ी और पटना हाइकोर्ट में वकालत शुरू की. उन्हें प्रैक्टिस करते हुए अभी एक साल भी नहीं हुआ था कि चंपारण में नील आंदोलन हो गया.इस आंदोलन ने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी.
नील आंदोलन में गांधी जी का किया था सहयोग
चंपारण के किसानों की तबाही की खबर जब महात्मा गांधी से सुने तो वे विचलित हो उठे.उस दौरान महत्मा गांधी किसानों के पक्ष में अपील करने के लिए काबिल और देशप्रेमी वकील तलाश रहे थे. इस कार्य के लिए ब्रजकिशोर बाबू के प्रोत्साहन पर राजेंद्र बाबू के साथ ही अनुग्रह नारायण भी तैयार हो गये. चंपारण का किसान आंदोलन करीब 45 महीनों तक चला. तब तक लगातार अनुग्रह एक वकील और क्रांतिवारी को तरह इस काम में लगे रहे, यहाँ तक कि जेल भेजने की धमकियों ने भी उनपर कोई असर नहीं डाल.
आजादी के बाद आधुनिक बिहार के निर्माता के रूप में मिली पहचान
अनुग्रह लगातर गांधीजी समेत कई महान क्रांतिकारियों के साथ रहे. इस साथ ने उनकी सोच पर असर डाला और वह लगातार देश की आजादी के सपने देखने लगे. चाहे वह नमक सत्याग्रह आंदोलन हो या फिर स्थानीय लोगों की कोई जरूरत, जब नमक आंदोलन के दौरान अनुग्रह जेल में थे, तभी बिहार में प्रलयकारी भूकंय आया. वर्ष 1934 मैं आयी इस अपद ने राज्य में तबाही मचा दी. आधिकारिक तौरपर सात हजार से ज्यादा मीत हुई और लाखों बेघर हो गये. जेल से निकलते ही वह तुरत पीड़ितों की देखभाल में जुट गये. वह शहर-शहर दौरा करते और लोगों की समस्याएं सुलझाते. इसी दौरान उनकी पहचान बिहार के लोकनेता के तौर पर उभरी. वह सभी आंदोलनों में निडर होकर आगे रहते और राज्य के अलग अलग हिस्सों में सभाएं आयोजित करते थे. आजाद भारत की भाग जोर पकड़ने के बाद वर्ष 1937 में वह राज्य के वित्तमंत्री बने. वर्ष 1946 में जब दूसरा मंत्रिमंडल बना, तब वह वित्त समेत श्रम विभाग के भी पहले मंत्री काम किये. अपने ऐसे ही योगदानों के कारण उन्हें आधुनिक बिहार का निर्माता भी कहा जाता है, 5 जुलाई, 1957 को बीमारी के चलते उनका निधन हो गया.
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