Bihar Politics: चुनाव से पहले बिहार में आई नई पार्टियों की बाढ़, क्या खिसका पाएंगे लालू-नीतीश का जनाधार?

Bihar Politics: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले बिहार में कई नई पार्टियों का उदय हुआ है. इनमें सबसे प्रमुख चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ये पार्टियां चुनाव में बड़े पार्टियों का खेल बिगाड़ पाएंगी.

By Prashant Tiwari | May 3, 2025 4:41 PM
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Bihar Politics: साल के आखिरी में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बिहार की राजनीति में एक अलग हलचल मची हुई है. बिहार के कई बड़े नेता या तो पाला बदलकर एक दूसरे की पार्टी में शामिल हो रहे हैं या खुद की पार्टी बना रहे है. ऐसे में आज हम आपको उन पार्टियों के बारे में बताएंगे जो चुनाव से महज एक साल पहले बनी हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ये पार्टियां बिहार के दो दिग्गज लालू यादव और नीतीश कुमार की पार्टी के जनाधार में सेंध लगा पाएंगी या फिर पानी का बुलबुला बनकर रह जाएंगी. 

आईपी गुप्ता की इंडियन इंकलाब पार्टी सबसे नई 

अखिल भारतीय पान महासंघ के अध्यक्ष इंजीनियर आईपी गुप्ता ने पिछले दिनों पटना के गांधी मैदान में एक जनसभा करके अपनी  इंडियन इंकलाब पार्टी के गठन की घोषणा की. इस दौरान गुप्ता ने अपने भाषण में कहा कि जैसे यादव, कुशवाहा, पासवान और अन्य समाज के नेताओं ने अपनी-अपनी पार्टियां खड़ी की हैं, वैसे ही अब तांती-ततवा समाज भी अपनी राजनीतिक पहचान बनाएगा. हमारी पार्टी का मुख्य एजेंडा पान समाज को आरक्षण और राजनीतिक भागीदारी दिलाना है. गुप्ता का दावा है कि जिस तरह दूसरे समुदायों ने अपनी एकता से सत्ता में हिस्सेदारी पाई, वैसे ही उनका समाज भी अब संगठित होकर आगे बढ़ेगा. 

 हिंद सेना पार्टी: ‘सिंघम’ की सियासत में दस्तक

बिहार के लोकप्रिय पूर्व आईपीएस अधिकारी शिवदीप लांडे, जिन्हें ‘बिहार का सिंघम’ कहा जाता है, ने हिंद सेना पार्टी के नाम से नई पार्टी बनाई है. अप्रैल 2025 में इस पार्टी की घोषणा करते हुए उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य बिहार में “सच्चा बदलाव” लाना है. लांडे ने यह भी खुलासा किया कि उन्हें कई राजनीतिक दलों ने मंत्री पद और राज्यसभा सीट का प्रस्ताव दिया था, लेकिन उन्होंने अपनी स्वतंत्र पार्टी बनाकर युवाओं के मुद्दों पर राजनीति करने का निर्णय लिया है. उनकी पार्टी का फोकस मुख्यतः युवा वोटबैंक और सत्ता में नैतिकता की बहाली पर है.

जन सुराज: पीके का जन आंदोलन

प्रशांत किशोर (PK), जो देशभर में चुनावी रणनीतिकार के रूप में पहचाने जाते हैं, अब सक्रिय रूप से बिहार की राजनीति में उतर चुके हैं. उन्होंने 2 अक्टूबर 2024 को गांधी जयंती के दिन जन सुराज पार्टी का गठन किया. जन सुराज का एजेंडा है, सही लोग, सही सोच और सामूहिक प्रयास. पार्टी बिहार में शराबबंदी खत्म करने, रोजगार सृजन, शिक्षा सुधार और पलायन रोकने जैसे मुद्दों पर फोकस कर रही है. पीके की रणनीति है जाति-वर्ग से ऊपर उठकर गरीब, पढ़े-लिखे और युवा वर्ग को जोड़ना. 

आप सबकी आवाज: आरसीपी सिंह की सियासी वापसी

एक समय नीतीश कुमार के सबसे भरोसेमंद सहयोगियों में गिने जाने वाले आरसीपी सिंह अब अपनी पार्टी आप सबकी आवाज लेकर सामने आए हैं. जेडीयू से निष्कासन और बीजेपी में अल्पकालिक भूमिका के बाद आरसीपी सिंह ने स्वतंत्र राजनीतिक राह चुनी. उनकी पार्टी का मुख्य उद्देश्य कुर्मी समाज के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को मज़बूत करना है. बिहार की राजनीति में कुर्मी समुदाय को ‘लव-कुश’ समीकरण में महत्वपूर्ण माना जाता है, और आरसीपी इस समीकरण को पुनः अपने पक्ष में करना चाहते हैं. 

राष्ट्रीय प्रगति पार्टी 

राष्ट्रीय प्रगति पार्टी, जिसके नेता अमरकांत साहू हैं, हाल ही में चर्चा में तब आई जब इस पार्टी का राजद में विलय हो गया. साहू वैश्य समाज से आते हैं, और उनका राजद में शामिल होना इस बात का संकेत है कि लालू प्रसाद यादव अब वैश्य समाज में भी अपनी पैठ बनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. साहू ने 29 अप्रैल को भामा शाह जयंती के अवसर पर आरजेडी कार्यालय में लालटेन थामा. यह कदम उन नई सामाजिक जोड़-तोड़ों का हिस्सा है, जो बिहार की राजनीति को 2025 के चुनाव से पहले बदल सकते हैं.

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क्या लगा पाएंगे लालू-नीतीश के जनाधार में सेंध?

इन सब पार्टियों के उदय के बीच सवाल उठता है कि क्या ये पार्टियां जो चुनाव से महज कुछ महीने पहले बनी है. वह जेपी के शिष्य रहे लालू यादव और नीतीश कुमार के वोट बैंक में सेंध लगा पाएंगे. इस सवाल के जवाब में बिहार की राजनीति पर नजर रखने वाले पत्रकार बताते हैं कि इन सभी पार्टियों का जनता के बीच में कोई जनाधारनहीं है. हालांकि जन सुराज कुछ मामलों में इन सबसे आगे है. लेकिन वह भी इस स्थिती में नहीं है कि वह सरकार बनाने या बिगाड़ने में कोई भूमिका निभा सके. 

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