आनंद मार्ग का चार दिवसीय कीर्तन व सत्संग कहलगांव के हेमजापुर बसकोला गांव में मंगलवार को हुआ. कार्यक्रम में आनंद मार्ग से जुड़े साधकों ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया. प्रधान सुरेंद्र प्रसाद ने लोगों को आनंद मार्ग के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि आनंद मार्ग, जिसे सुनने से ही स्पष्ट होता है कि जिस पथ या रास्ता पर चलकर जीवन में आनंद ही आनंद यानि परमानंद की प्राप्ति हो, उसे आनंद मार्ग कहते हैं. उन्होंने कहा कि मानव जीवन त्रिस्तरीय है शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक. जीवन के हर कार्य में मनुष्य परम शांति एवं परमसुख अर्थात आनंद चाहता है. तारकब्रह्म श्रीश्री आनंदमूर्ति जी आनंद सूत्रम में सुख-दुःख के विषय में लिखे हैं. अनुकूलवेदनीयं सुखम् अर्थात् जिस कर्म का प्रतिफलन हमारे इच्छा के अनुरूप या अनुकूल होता है, उसे सुख कहते हैं. प्रतिकूलवेदनीयं दुखम् अर्थात जिस कर्म का प्रतिफलन हमारे इच्छा या आशा के विपरीत या प्रतिकूल होता है, उसे दुःख कहते हैं. अगर गहराई से देखा जाय, तो मनुष्य अपने जीवन में न तो दुःख चाहता है और न ही क्षणिक सुख. यही कारण है कि कुछ पाने के बाद भी हमारी ईच्छा, आशा, तृष्णा कभी तृप्त नहीं हो पाती. सदैव कुछ पाने के बाद और अधिक, और ज्यादा पाने की लालसा बनी रहती है. इसलिए तारकब्रह्म श्री श्री आनन्दमूर्ति जी आनंद सूत्रम् में कहते हैं बृहदेषणा प्रणिधानं च धर्मः अर्थात् बृहत या अनन्त प्राप्ति की इच्छा ही मनुष्य मात्र का धर्म है. यही कारण है कि मनुष्य जागतिक यानि क्षणिक भौतिक सुख पाकर कभी भी संतुष्ट नहीं हो पाता. वास्तव में हम सुख नहीं बल्कि आनंद की प्राप्ति करना चाहते हैं. सुखम् अनन्तम् आनन्दम् अर्थात् ऐसा सुख जिसका कोई अंत नहीं है, जो कभी खत्म नहीं होता है. आनंद की प्राप्ति कभी भी जागतिक जगत के भोग से संभव नहीं है. मनुष्य की इच्छाएं अनन्त है व यह जगत सीमित है. अनन्त इच्छाओं की पूर्ति एवं संतुष्टि सीमित व क्षणभंगुर संसार से संभव नहीं है. अनन्त सुख यानि परमानन्द की प्राप्ति केवल ब्रह्म साधना से ही संभव है.
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