Prabhat Khabar Exclusive: भागलपुर में लाजपत पार्क पर नगर निगम और वन विभाग आमने-सामने, रुका है विकास का काम

Prabhat Khabar Exclusive: दोनों विभागों के बीच तनाव के बीच निगम की लाजपत पार्क से आमदनी समाप्त हो गयी है. दरअसल, पार्क के खाली जगहों को किराये पर देना मुश्किल हो गया है. परमिशन नहीं मिलने से डिजनीलैंड मेला नहीं लग सका. यानी, इसका निगम के राजस्व पर भी सीधा असर पड़ा है. पार्क में कोई बड़ा इवेंट आयोजित नहीं हो पा रहा है.

By Paritosh Shahi | June 11, 2025 5:15 AM
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Prabhat Khabar Exclusive: भागलपुर शहर के बीचों-बीच स्थित लाजपत पार्क को लेकर नगर निगम और वन विभाग के बीच अधिकार को लेकर तनातनी शुरू हो गयी है. निगम के अनुसार वर्षों से यह पार्क नगर निगम के अधीन रहा है और मालिकाना हक भी, लेकिन अब वन विभाग इसे अपने नियंत्रण में लेने की कोशिश में जुटा है. वन विभाग के अनुसार पूर्व नगर आयुक्त डॉ प्रीति ने लाजपत पार्क को वन विभाग के हवाले कर दिया है लेकिन, अबतक वहां विभाग की ओर से कोई भौतिक कार्य नहीं की जा सका है. लेकिन, डेवलपमेंट कार्य कराया जायेगा और योजना बनायी जा रही है. इस तरह से दोनों विभाग के बीच हल्की तनातनी शुरू हो गयी है.

नये नगर आयुक्त आने पर शुरू होगा पत्राचार

नया नगर आयुक्त फिलहाल छुट्टी पर हैं. उनके आने के साथ पत्राचार शुरू हो जायेगा. कुछ दिन पहले स्थायी समिति की बैठक में यह मुद्दा सदस्यों ने उठाया था कि मालिकाना हक नगर निगम के पास है, तो उनसे परमिशन लेने की आवश्यकता क्यों पड़ रही है. वन विभाग को सिर्फ पेड़-पौधों की देखरेख की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन अब वह पूरे पार्क पर दावा कर रहा है. किराये पर खाली जगहों को देना मुश्किल हो गया है. आय का स्रोत बंद है. बैठक में निर्णय हुआ था कि मालिकाना हक रहने की वजह से लाजपत पार्क को किराये पर देने का निर्णय खुद निगम लेने के लिए सक्षम है.

गुस्से में पार्षद

लाजपत पार्क को लेकर पार्षद भी गुस्से में हैं. स्थायी समिति सदस्य पार्षद संजय सिन्हा का कहना है कि नगर निगम के पास मालिकाना हक रहने के बाद भी इसको किराये पर देने के लिए वन विभाग से परमिशन लेना पड़ रहा है और यह कहीं से न्यायोचित नहीं है. यह मामला जितना जल्दी सुलझ जायेगा, उतनी जल्दी आय का स्रोत बढ़ेगा.

लाजपत पार्क: फंड हैं, पर पावर नहीं, समान क्षतिग्रस्त होने से पार्क बदहाल

लाजपत पार्क की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है. पार्क को दुरुस्त करने के लिए नगर निगम के पास फंड तो है, लेकिन दुर्भाग्यवश उसे खर्च करने पावर नहीं है. दरअसल, प्रभारी नगर आयुक्त को खर्च के अधिकार से वंचित कर रखा है. जिसके चलते पार्क की व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गयी है.

पार्क में जगह-जगह टूट-फूट का आलम है. बच्चों के खेलने के झूले हो या बैठने की बेंच सभी क्षतिग्रस्त हो चुके हैं. स्टेडियम की छत उड़ गयी है, जिससे खेल गतिविधियों पर सीधा असर पड़ रहा है. वॉकिंग ट्रैक के टाइल्स उखड़ गये हैं, जिससे सुबह-शाम टहलने वालों को परेशानी का सामना करना पड़ता है.

ओपन जिम का छप्पर जगह-जगह से टूटा हुआ है, जिससे व्यायाम करने वाले लोगों को बारिश से बचाव नहीं हो पाता. सफाई व्यवस्था का भी बुरा हाल है. डस्टबिन फटे हुए हैं और योग स्थल भी क्षतिग्रस्त हो गया है. पार्क के ये टूटे-फूटे सामान अब गार्ड रूम के पीछे और मुख्य दरवाजे के पास ढेर कर दिये गये हैं, जो पार्क की बदहाली की कहानी खुद बयां करते हैं.

क्या बोले प्रभारी नगर आयुक्त

प्रभारी नगर आयुक्त कुंदन कुमार ने कहा कि नगर निगम का हाल किसी से छुपा नहीं है. लाजपत पार्क को सुधारने पर कोई खर्च नहीं कर सकते हैं. हमें पैसा खर्च करने का पावर ही नहीं मिला है. वन विभाग अगर दावा कर रहा है, तो नये नगर आयुक्त आयेंगे तो वह समझेंगे कि कैसे क्या करना है.

मेयर बोले- सुलझा लिया जायेगा मामला

इस मामले पर मेयर डॉ बसुंधरा लाल ने कहा कि लाजपत पर्क पर मालिकाना हक निगम का है. सिर्फ पेड़-पौधों की देखरेख के लिए वन विभाग को दिया गया है. नये नगर आयुक्त आयेंगे, तो इस मामले में उनसे बातचीत की जायेगी और इसको सुलझा लिया जायेगा.

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लाजपत पार्क में किसका पानी, पौधा किसका ?

लाजपत पार्क में पिछले करीब 10 दिनों से एक नयी व्यवस्था की गयी है. वाकिंग पथ के किनारे लगाये गये 50 नये पौधों की सेवा की जिम्मेदारी आकाश जीविका, प्रीतम जीविका व मंत्रा जीविका संगठन से जुड़ी लगभग 10 महिलाओं को नगर प्रशासन द्वारा दी गयी है.

इन पौधों में प्रतिदिन सिंचाई करने और इसकी देखभाल करने के लिए हर दिन विंदु मिश्रा, चंपा देवी, उषा देवी, पुतुल देवी, रेखा देवी, संगीता देवी, संजू देवी, वीणा देवी व वीणा देवी आदि आती हैं. इन महिलाओं के सामने संकट यह है कि मोटर से पानी लेने के लिए जद्दोजहद करना पड़ता है.

टहलने आये लोगों का कहना था कि यह रोज का तमाशा है. उनका कहना था कि संभवत: मोटर वन विभाग का है. मोटर चालक को ये महिलाएं ढूंढ़ती रहती हैं, जबकि आसपास के कुछ लोग यहां रोज आराम से स्नान का लाभ लेते हैं. इससे महिलाओं को सिंचाई करने में परेशानी होती है. मोटर का प्रबंधन जब तक दुरुस्त नहीं होगा, परेशानी बनी रहेगी.

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