संघर्ष की कहानी: झाड़ू-पोछा करने वाली मां की बेटी बनी जिला टॉपर, चार साल की थी तब पिता का हो गया था निधन

संघर्ष की कहानी: कोमल ने प्रभात खबर से भी फोन के माध्यम से बातचीत में कहा कि मुझे उम्मीद थी कि मुझे इससे भी ज्यादा नंबर आयेगा लेकिन 461 नंबर आया है. मैं आगे और ज्यादा मेहनत करूंगी ताकि इससे ज्यादा नंबर आगे का पाऊं. मेरा लक्ष्य था कि मैं टॉप 10 में सलेक्ट हो पाऊं. मेरे शिक्षक ने जो नोट दिए उसके सहारे और अपने मेहनत के बल पर इस मुकाम पर पहुंची हूं.

By Paritosh Shahi | March 25, 2025 6:35 PM
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संघर्ष की कहानी, भागलपुर, अंजनी कुमार कश्यप : सपनों की कोई सीमा नहीं होती, और मेहनत का कोई विकल्प नहीं। इसे सच कर दिखाया है भागलपुर के नवगछिया इंटर स्तरीय हाई स्कूल की छात्रा कोमल कुमारी ने, जिन्होंने बिहार बोर्ड इंटरमीडिएट परीक्षा में कॉमर्स संकाय में जिले में टॉप कर अपने परिवार और पूरे जिले का नाम रौशन किया. कोमल को 461 अंक मिले हैं, लेकिन इन अंकों के पीछे की कहानी सिर्फ पढ़ाई की नहीं, बल्कि संघर्ष, समर्पण और एक मां की अटूट मेहनत की है, जिसने समाज की हर बाधा को पार कर अपनी बेटी के सपनों को ऊंचाइयों तक पहुंचाया.

जब बेटी ने कहा ‘मां, मैं जिला टॉपर बन गई’

जैसे ही रिजल्ट जारी हुआ और कोमल ने फोन पर अपनी मां से कहा, “मां, मैं जिला टॉपर बन गई हूं!”, तो मां के आंखों में आंसू छलक आए. वह कुछ बोल नहीं सकीं, बस बार-बार यही कहती रहीं, “बेटी ने बहुत मेहनत की है, दिन-रात एक कर दिया था पढ़ाई के लिए.” घर में खुशी का माहौल है. रिश्तेदारों और पड़ोसियों का तांता लग गया. मिठाइयां बंटने लगीं, लेकिन इस खुशी के पीछे की तपस्या और संघर्ष की कहानी किसी को भी भावुक देगी.

14 साल पहले पिता का साया उठा, मां ने झाड़ू-पोछा कर पाला

कोमल की जिंदगी संघर्षों से भरी रही है. जब वह महज चार साल की थी, तभी उसके पिता का निधन हो गया. आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर थी कि मां को गोपालपुर प्रखंड के लत्तीपाकर के पैतृक घर को छोड़कर किराए के मकान में शरण लेनी पड़ी. गुजारे के लिए मां को नवगछिया के राजेंद्र नगर कॉलोनी में घर-घर जाकर झाड़ू-पोछा करना पड़ा. एक मां के लिए यह कोई आसान फैसला नहीं था, लेकिन उनके लिए सबसे जरूरी था – बेटी की पढ़ाई. “पति के जाने के बाद पूरे परिवार की जिम्मेदारी मुझ पर आ गई. तीन बच्चे हैं, और उन्हें पढ़ाने के लिए मैंने मजदूरी तक की, लेकिन हिम्मत नहीं हारी.”

बेटी ने दिन-रात की मेहनत, मां के सपनों को दिया पंख

कोमल जानती थी कि मां कितनी तकलीफें सह रही हैं, इसलिए उसने ठान लिया कि वह पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ेगी. वह दिन-रात पढ़ाई करती थी, घंटों किताबों में डूबी रहती. कई रातें उसने जागकर बिताई, बस एक ही सपना था – मां के संघर्ष का सम्मान करना. “मेरी मां मेरे लिए सबकुछ हैं. उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी हमें पढ़ाने में लगा दी. जब लोग कहते थे कि एक मजदूर की बेटी कुछ नहीं कर सकती, तो मुझे और ताकत मिलती थी मेहनत करने की.” – कोमल की आवाज़ में आत्मविश्वास झलकता है।

कोमल ने कर दिया कमाल

कोमल की सफलता की खबर मिलते ही पूरे गांव में खुशी की लहर दौड़ गई. लोग बधाई देने के लिए कोमल के घर पहुंचने लगे. हर कोई कह रहा था – “कोमल ने सच में कमाल कर दिया!” गांव की एक बुजुर्ग महिला ने भावुक होकर कहा, “इस बच्ची ने दिखा दिया कि मेहनत और लगन से कुछ भी संभव है. इसका संघर्ष देखकर भगवान भी प्रसन्न होंगे.”

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कोमल के सपने और आगे की राह

कोमल की सफलता सिर्फ उसके परिवार के लिए नहीं, बल्कि उन हजारों बेटियों के लिए प्रेरणा है जो किसी न किसी वजह से अपने सपनों से समझौता कर लेती हैं. अब कोमल का सपना है कि वह चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) बने. इसके लिए वह कड़ी मेहनत कर रही है. “मैं अपनी मां के लिए बहुत कुछ करना चाहती हूं. अब मैं उन्हें काम पर नहीं जाने दूंगी. मैं चाहती हूं कि वो आराम करें और मेरा सपना है कि उन्हें एक अच्छा घर दूं.” – कोमल की आवाज़ में एक नया जोश था।

ऐसी कहानियां बनाती हैं समाज को मजबूत

कोमल की यह कहानी सिर्फ एक रिजल्ट का जश्न नहीं है, बल्कि एक मां के संघर्ष, त्याग और बेटी के आत्मविश्वास की मिसाल है. यह साबित करता है कि परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों, अगर इरादा मजबूत हो तो कोई भी सपना साकार किया जा सकता है. आज कोमल न सिर्फ अपनी मां, बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा बन गई है. उसकी सफलता उन सभी बेटियों के लिए रोशनी की किरण है, जो हालात से हार मानने की बजाय उन्हें चुनौती देने का जज्बा रखती हैं.

पढ़ाई पर क्या बोली कोमल

कोमल ने कहा, “मैट्रिक मैने अपने पैतृक गांव से किया है. मुझे आगे बैंक सेक्टर में जाना है और मैने कॉमर्स की इसलिए चुना था. मुझे यहां इस मुकाम पर पहुंचाने में मेरे गुरुजनों और मेरे परिवार के सभी सदस्यों का महत्वपूर्ण योगदान है. मेरी मां ने बहुत संघर्ष और मेहनत कर के मुझे पढ़ाया है और मैने उनके संघर्ष को समझा और आज इस मुकाम तक पहुंची.”

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