भारत रत्न: किसी पेशे को छोटा नहीं समझते थे कर्पूरी ठाकुर, नौकरी मांगने पर बहनोई को दिये थे अस्तूरा के लिए पैसे
उन्होंने कभी चुनाव नहीं हारा. वो एक बार उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री पद को शोभित हुए. उसके बाद अधिकतर समय उन्होंने विरोधी दल के नेता की ही भूमिका निभाई. कर्पूरी ठाकुर की ईमानदारी को इस बात से समझा जा सकता है कि जब उनका निधन हुआ तो उनके बैंक खाते में पांच सौ रूपए भी नहीं बचे थे .
By Prabhat Khabar Digital Desk | January 23, 2024 8:40 PM
पटना. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने जननायक कर्पूरी ठाकुर को देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान भारत रत्न देने का फैसला किया है. कर्पूरी ठाकुर(Karpoori Thakur) ने 1952 में बिहार विधान सभा का पहली बार चुनाव जीता था और राजनीति में हमेसा अजेय ही रहे. उन्होंने कभी चुनाव नहीं हारा. वो एक बार उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री पद को शोभित हुए. उसके बाद अधिकतर समय उन्होंने विरोधी दल के नेता की ही भूमिका निभाई. कर्पूरी ठाकुर की ईमानदारी को इस बात से समझा जा सकता है कि जब उनका निधन हुआ तो उनके बैंक खाते में पांच सौ रूपए भी नहीं बचे थे वहीं जायदाद के नाम पर केवल एक खपरैल का पुराना मकान था.
बिहार के तत्कालीन दरभंगा जिले में हुआ था जन्म
24 जनवरी को जननायक कर्पूरी ठाकुर की 100वीं जयंती है. दरभंगा जिले में जन्मे कर्पूरी ठाकुर ने 1952 में बिहार विधान सभा का पहली बार चुनाव जीता था और राजनीति में हमेसा अजेय ही रहे. उन्होंने कभी चुनाव नहीं हारा. वो एक बार उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री पद को शोभित हुए. उसके बाद अधिकतर समय उन्होंने विरोधी दल के नेता की ही भूमिका निभाई. कर्पूरी ठाकुर की ईमानदारी को इस बात से समझा जा सकता है कि जब उनका निधन हुआ तो उनके बैंक खाते में पांच सौ रूपए भी नहीं बचे थे वहीं जायदाद के नाम पर केवल एक खपरैल का पुराना मकान था.
कहा जाता है कि जब कर्पूरी ठाकुर सीएम बने तो एक दिन उनके बहनोई नौकरी की सिफारिश कराने उनके पास पहुंचे. जब तत्कालिन सीएम को इस बात का पता चला तो उन्होंने अपनी जेब से कुछ पैसे निकाले और अपने बहनोई को सलाह दे दी कि वो बाजार से एक स्तूरा खरीद लें और पुराने पेशे को शुरू कर दें. वहीं सीएम बनने के बाद उन्होंने अपने बेटे को पत्र लिखकर सलाह दे दी थी कि वो इस बात से बिल्कुल प्रभावित ना हो कि उनके पिता मुख्यमंत्री बन गए हैं. उन्होंने लिखा कि वो किसी के लोभ-लालच में ना फंसे.इससे उसके पिता की बदनामी होगी.
…और कुर्ता का पैसा दे दिया सीएम राहत कोष में
एक और वाक्या उनकी सादगी को बताता है. जब 1977 में कर्पूरी ठाकुर जय प्रकाश नारायण के जन्मदिन समारोह में शामिल हुए. कर्पूरी उस समय बिहार के मुख्यमंत्री की भूमिका में थे. लेकिन समारोह में शरीक हुए चंद्रशेखर समेत कई नेता ने देखा कि कर्पूरी ठाकुर फटा कुर्ता पहनकर समारोह में आए हैं. कहा जाता है कि चंद्रशेखर ने वहां उपस्थित लोगों से मुख्यमंत्री के कुर्ता के लिए चंदा इकट्ठा किया और कर्पूरी ठाकुर को सौंपा. लेकिन कर्पूरी ने उस पैसे से कुर्ता नहीं खरीदा बल्कि उसे मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा कर दिया.