राजगीर का नाम राजगृह करने की मांग तेज

ऐतिहासिक नगरी राजगीर का नाम बदलकर उसके प्राचीन नाम राजगृह करने की मांग अब व्यापक जनभावनाओं के साथ जोर पकड़ने लगी है.

By SANTOSH KUMAR SINGH | August 3, 2025 9:12 PM
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राजगीर. ऐतिहासिक नगरी राजगीर का नाम बदलकर उसके प्राचीन नाम राजगृह करने की मांग अब व्यापक जनभावनाओं के साथ जोर पकड़ने लगी है. नगर परिषद, राजगीर के सामान्य बोर्ड द्वारा इस संबंध में प्रस्ताव पारित किया जा चुका है. साथ ही अनुमंडल पदाधिकारी द्वारा भी इसकी आधिकारिक अनुशंसा कर दी गई है. मुख्यमंत्री सचिवालय द्वारा मुख्य सचिव और जिला पदाधिकारी, नालंदा से रिपोर्ट भी तलब किया गया है. इससे यह मुद्दा अब सरकार के संज्ञान में आने की ओर अग्रसर है. यह मांग कोई नया विचार नहीं है, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान को पुनर्स्थापित करने का एक प्रयास है. प्राचीन ग्रंथों जैसे महाभारत, बौद्ध त्रिपिटक और जैन आगमों में जिस नगरी का उल्लेख ””””””””””””””””राजगृह”””””””””””””””” के रूप में है. वह आज का राजगीर ही है. यही वह भूमि है जहाँ मगध साम्राज्य के सम्राट जरासंध, बिंबिसार और अजातशत्रु ने राज्य किया है. यही वह पावन स्थल है, जहाँ भगवान बुद्ध ने धर्मचक्र प्रवर्तन किया है। यही वह पावन स्थल है, जहां ज्ञान प्राप्ति बाद पहला उपदेश तीर्थंकर महावीर ने दिया है. यही वह पावन स्थल है, जहां बौद्ध धर्मावलंबियों की पहली संगीति हुई है. त्रिपिटक की रचना इसी पावन धरती पर हुई है। यही स्थान भगवान बुद्ध और भगवान महावीर की भी तपोभूमि रहा है. स्थानीय प्रशासन इस दिशा में सकारात्मक पहल कर चुका है. राजगीर स्थित गंगाजी जलाशय को ””””””””””””””””गंगाजी राजगृह जलाशय”””””””””””””””” और सर्किट हाउस को ””””””””””””””””राजगृह अतिथि गृह”””””””””””””””” नाम दिया गया है. जैन और बौद्ध धर्मावलंबी इसे राजगृह के नाम से ही संबोधित करते हैं. इससे यह स्पष्ट संकेत मिल रहा है कि प्रशासन भी नाम परिवर्तन की ऐतिहासिक मांग को गंभीरता से ले रहा है. विभिन्न सामाजिक व धार्मिक संगठनों ने भी इस नाम परिवर्तन की मांग का समर्थन किया है. उनका कहना है कि ””””””””””””””””राजगृह”””””””””””””””” नाम न केवल ऐतिहासिक न्याय है, बल्कि इससे धार्मिक पर्यटन को भी नया बल मिलेगा. यह बौद्ध, जैन, सिख, हिन्दू धर्म और इस्लाम के श्रद्धालुओं के लिए एक पवित्र नगरी रही है. इसकी पहचान को प्राचीन नाम के माध्यम से ही सही अर्थों में सम्मान मिल सकेगा. जनता की भावनाओं को देखते हुए अब यह उम्मीद की जा रही है कि राज्य सरकार इस ऐतिहासिक मांग पर शीघ्र निर्णय लेगी. यदि मुख्यमंत्री और मंत्रीमंडल परिषद से स्वीकृति मिलती है, तो यह कदम बिहार की सांस्कृतिक विरासत को संजोने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी पहचान को मजबूत करने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा.

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