Chhath 2022: ढाई लाख साल पुराना है इस सूर्य मंदिर का इतिहास, छठ पर पहुंचते हैं लाखों श्रद्धालु

Chhath 2022: छठ महापर्व को लेकर बिहार में लोगों में खास उत्साह देखने को मिल रहा है. बड़ी संख्या में लोग गंगा घाट पर छठ व्रत के अर्ध्य के लिए जाते हैं. इसके साथ ही, बिहार के औरंगाबाद में भगवान सूर्य का विश्व प्रसिद्ध मंदिर है. बताया जाता है कि ये मंदिर करीब ढाई लाख वर्ष पुराना है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 26, 2022 8:08 PM
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Chhath 2022: छठ महापर्व को लेकर बिहार में लोगों में खास उत्साह देखने को मिल रहा है. बड़ी संख्या में लोग गंगा घाट पर छठ व्रत के अर्ध्य के लिए जाते हैं. इसके साथ ही, औरंगाबाद के देव में भगवान सूर्य का विश्व प्रसिद्ध मंदिर है. छठ पर्व पर इस मंदिर में आस्था का जन सैलाब उमड़ता है. हर वर्ष करीब 10 लाख लोग इस मंदिर में भगवान के दर्शन और अर्ध्य के लिए छठ पर्व में आते हैं. यहां छठ व्रत करने का विशेष महत्व है. बताया जाता है कि इस मंदिर का इतिहास करीब ढाई लाख वर्ष पुराना है. भक्तों की भीड़ को देखते हुए यहां चार दिनों का मेला लगता है. ये मेला नहाय-खाए से शुरू होकर पारण के दिन तक चलता है.

त्रेता युग में मंदिर का हुआ था निर्माण

देव मंदिर में एक शिलालेख है. इसके मुताबिक इस मंदिर का निर्माण करीब ढाई लाख वर्ष पहले इला के बेटे राजा ऐल ने कराया था. ऐसी मान्यता है कि राजा को कुष्ठ रोग हो गया था. एक बार वो किसी कारण से जंगल में आए. यहां उन्होंने एक गड्ढे के पानी से अपने शरीर पर लगी गंदगी को साफ किया. इससे उनका कुष्ठ दूर हो गया. इसके बाद राजा ऐल को रात में स्वप्न आया कि जिस स्थान पर उसने गड्ढे से अपना शरीर साफ किया था, वहां एक मूर्ति है. इसके बाद अगले दिन राजा ने मूर्ति निकाल कर वहां मंदिर निर्माण का काम शुरू करवाया. आज भी ऐसी मान्यता है कि मंदिर के सूर्य कुंड में स्नान करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है.

अद्भुत है मंदिर की शिल्प कला

देव सूर्य मंदिर को कोणार्क के तर्ज पर देवार्क भी कहा जाता है. इस मंदिर का शिल्प और वास्तु कला कोणार्क मंदिर की तरह ही अद्भुत है. इस मंदिर के निर्माण में कहीं भी जुड़ाई नहीं की गयी है. इसमें चूना, सुर्खी, सीमेंट जैसे किसी भी पदार्थ का इस्तेमाल ही नहीं किया गया है. इसे एत पत्थर पर एक पत्थर रखकर बनाया गया है. हालांकि अब मंदिर में कहीं-कहीं दरार भी पड़ रही है, जो साफ-सफाई के वक्त दिखायी देती है. छठ के लगभग महीनों पहले गांव के लोगों के घर के कमरे की बुकिंग हो जाती है.

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