Darbhanga News: जाले. आषाढ़ मास में मौसम के तल्ख तेवर से जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है. त्राहिमाम की स्थिति बन गयी है. सुबह 10 बजे के बाद ही सड़कें सूनी पड़ जाती हैं. लोग घरों में कैद हो जाते हैं. मौसम के तल्ख तेवर से खेतों की नमी समाप्त होने के साथ-साथ नदी-तालाबों का पानी भी कम होने लगा है. प्रखंड क्षेत्र के कुछ पंचायतों के चापाकल ने पानी देना बंद कर दिया है. कुछ काफी कम पानी दे रहा है. प्रखंड को दो भाग में बांटने वाली खिरोई नदी भी सूख गयी है. कुछ जगह घुटना से नीचे पानी है. नहरों में पानी की जगह झाड़ीनुमा घास उग आये हैं. प्रखंड क्षेत्र में डेढ़ सौ सरकारी समेत दो दर्जन निजी तालाब हैं. इसमें से 120 सरकारी तालाब में मछली पालन तथा 30 में मछली सह मखाना की खेती होती है. वहीं कुछ निजी तालाब में केवल मछली पालन व कुछ में मखाना की खेती होती है. मत्स्यजीवी सहयोग समिति के सचिव शिवजी सहनी ने बताया कि इलाके के सबसे बड़े रजोखर पोखर में मछलियों को बचाने के लिए कार्तिक मास से ही निजी नलकूपों से लगातार पानी दिया रहा है. बताया कि प्रखंड क्षेत्र के 10-12 तालाब ऐसे हैं, जिनके किनारे निजी नलकूप लगाया गया है. अन्य में भी पानी के अभाव के कारण मछली पालन में कठिनाई को देखते हुए नलकूप गाड़ने पर विचार किया जा रहा है. सरकारी मदद की प्रत्याशा में अभीतक नहीं गाड़ा जा सका है. रतनपुर स्थित महंथ पोखर का पानी काफी हद तक सूख गया है. उसमें डाली गयी मछली का जीरा मरने लगी है. मत्स्य सोसाइटी के सदस्य राजेश्वर सहनी, भरोस सहनी, देवेन्द्र सहनी, पचकौड़ी सहनी आदि ने बताया कि इस तालाब में इतना गाद बैठ गया है कि इसका पानी खराब हो गया है. मछली का जीरा मरते देख पानी को जांचने के लिए प्रयोगशाला में ले गए थे. वहां बताया गया कि इस पानी का पीएच मान काफी कम है. यही हाल रहा तो जल्द ही पानी जहरीला हो जाएगा. राजेश्वर सहनी ने बताया कि कि उसके पिता लखन सहनी कहते थे कि महंथ पोखर का पानी इतना मीठा था कि इसे लोग खाना बनाने व पीने के लिए उपयोग करते थे. अंग्रेज के जमाने में एक बार इतना बड़ा अकाल पड़ा की रजोखर पोखर सहित आसपास के सभी तालाब समेत खिरोई नदी भी सूख गयी थी. उस समय एकमात्र महंथ पोखर में ही पानी बचा था. रतनपुर, ब्रह्मपुर, कछुआ सहित आसपास के गांव के लोग इसी तालाब का पानी खाना बनाने व पीने के लिए ले जाते थे.
संबंधित खबर
और खबरें