Exclusive: गया के पटवाटोली में 5 साल पहले शुरू हुआ लहंगा कारोबार, आज हर महीने तैयार हो रहे 3 लाख जोड़े

गया के पटवाटोली के पावर लूम से प्रतिमाह तीन लाख जोड़े लहंगे तैयार किए जा रहे हैं. यहां होने वाले उत्पादन का अकेले 80% झारखंड में खपत हो रहा है

By Anand Shekhar | May 9, 2024 6:55 AM
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नीरज कुमार, गया

गया जिले के मानपुर स्थित पटवाटोली मुहल्ला पिछले करीब 60 वर्षों से बुनकरों का हब है. यहां की इन पावर लूम मशीनों पर चादर से लेकर गमछा, बिछावन के साथ-साथ पूरे बिहार में सप्लाइ होने वाला पितांबरी का उत्पादन हो रहा है. अब बीते करीब पांच वर्षों से यहां तेजी से लहंगा उत्पादन से बुनकर जुड़े रहे हैं. यहां का बना लहंगा 80 प्रतिशत से अधिक अकेले झारखंड खपत कर रहा है. बाकी 20 प्रतिशत बंगाल सहित देश के कई अन्य राज्यों में जा रहा है.

पटवाटोली के पावर लूम से प्रतिमाह तीन लाख जोड़े हो रहे तैयार

जानकारी के अनुसार, यहां के पावर लूम से प्रतिमाह तीन लाख जोड़े लहंगे तैयार हो रहे हैं. गौरतलब है कि वर्ष 1965 में तत्कालीन सरकार द्वारा उपलब्ध कराये गये 10 यूनिट मंगल करघा उद्योग से यहां पावर लूम शुरू हुआ था. इससे पहले वर्ष 1957 से यहां हस्तकरघा उद्योग संचालित था. करीब 1500 घरों के इस मुहल्ले में वर्तमान में 12 हजार से अधिक पावर लूम संचालित हैं.

इस उद्योग से 1500 बुनकरों के परिवारों के अलावा 40 हजार से अधिक कामगार व उनके परिजनों का भरण-पोषण हो रहा है. यहां के उत्पादों की मांग देश के अधिकतर राज्यों में होने से वर्ष 2022 से सालाना औसतन छह सौ करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार हो रहा है.

प्रतिदिन 10 हजार जोड़े से अधिक लहंगे हो रहे तैयार

मानपुर के इस पटवा टोली में पांच सौ से अधिक पावर लूम मशीनों पर बीते करीब पांच वर्षों से केवल लहंगे बनाये जा रहे हैं. इन मशीनों पर प्रतिदिन औसतन 10 हजार जोड़ा यानी प्रतिमाह तीन लाख जोड़े से अधिक लहंगे बनकर तैयार हो रहे हैं.

गोटेदार धागे व लाल बॉर्डर के लहंगे की सबसे अधिक मांग

यहां के बुनकरों की माने तो डिमांड के अनुसार गोटेदार, गोल्डन धागे व लाल बॉर्डर के लहंगे का उत्पादन सबसे अधिक हो रहा है. इसके अलावा यहां लहंगे के अन्य किस्म सहित झारखंडी साड़ी, पूजा साड़ी, लाल बॉर्डर की साड़ी, पीतांबरी, सामान्य साड़ी, गमछा, तोसक, रजाई, गद्दा का कपड़ा, बेडशीट भी बनाये जा रहे हैं.

क्या कहते हैं सचिव

दूसरे राज्यों में बनने वाले लहंगे की तुलना में सस्ता होने से बिहार, झारखंड के अलावा दक्षिण भारत के राज्यों में भी इसकी मांग होने लगी है. मांग की पूर्ति के लिए मशीनों की संख्या बढ़ाई जायेगी. सरकार से इस क्षेत्र में समुचित सहयोग मिला तो लहंगा उत्पादन में भी पटवा टोली का पावर लूम देश में अव्वल साबित हो सकता है. दूसरे राज्यों से उत्पादन से जुड़े सामग्री की खरीदारी करने से अन्य कपड़े दूसरे राज्यों की तुलना में कुछ महंगा साबित हो रहे हैं.

दुखन पटवा, सचिव, बिहार प्रदेश बुनकर कल्याण संघ, गया

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