मृत आत्माओं के नाम से टिकट बुकिंग
इस कहानी को लेकर विस्तार रूप से बात की जाए तो, पिंडदानी अपने पितरों के मोक्ष की प्राप्ति के लिए गयाजी पहुंचते हैं. यहां आने वाले पिंडदानी के कंधे पर एक दण्ड में लाल या पीले कपड़े में नारियल बंधा रहता है. उस दण्ड को पितृदंड कहते हैं. पिंडदानी, पितृदण्ड को एक बच्चे की तरह घर से गयाजी लाते हैं. पिंडदानियों की आस्था को इसी बात से समझा जा सकता है कि, वे पितृदंड को बस, ट्रेन या फिर किसी भी वाहन से लाते हैं तो, उनके लिए सीट बुक की जाती है.
तीर्थयात्रियों की आस्था का बड़ा जुड़ाव
कहा जाता है कि, ट्रेन में सीट बुक होने के बाद यदि उस सीट पर कोई नहीं है तो ट्रेन में मौजूद टीटीई दूसरे को सीट दे देते हैं. लेकिन, यहां ऐसा बिल्कुल भी नहीं होता. यहां टीटीई भी पिंडदानियों की आस्था को समझते और सम्मान करते हैं. साथ ही उस सीट पर पितृदंड लेटे रहते हैं. बता दें कि, इस दौरान कच्चा बांंस का 13 पोर से बने पितृ स्वरूप पितृदंड को लेकर तीर्थयात्रियों की आस्था का बड़ा जुड़ाव है.
हजारों सालों की परंपरा आज भी कायम
बता दें कि, देश-विदेश से लोग गयाजी में पितृपक्ष मेले के दौरान पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. मान्यता है कि, गयाजी में मोक्षधाम में पितरों का वास होता है. जो लोग सनातन धर्म को मानते हैं, जिन्हें पितरों में आस्था और श्रद्धा होती है, वे सभी गयाजी श्राद्ध करने आते हैं. पिंडदानी का पूरा कर्मकांड उनके श्रद्धा पर निर्भर होता है. वहीं, हजारों सालों से चलती आ रही गयाजी में पितृदण्ड लाने की परंपरा आज के आधुनिक युग में भी कायम है.
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