Gaya News : सावन में हरे रंग की चूड़ियों और साड़ियों की बढ़ी मांग, कारोबार में दिख रही रौनक

Gaya News : सावन मास में हरी चूड़ियों और साड़ियों के उपयोग की परंपरा आज भी जीवित है. इसी धार्मिक आस्था का असर बाजार पर भी स्पष्ट दिख रहा है.

By PRANJAL PANDEY | July 22, 2025 10:38 PM
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नीरज कुमार, गया जी. सावन मास में हरी चूड़ियों और साड़ियों के उपयोग की परंपरा आज भी जीवित है. इसी धार्मिक आस्था का असर बाजार पर भी स्पष्ट दिख रहा है. चूड़ियों के थोक कारोबारी मो नौशाद के अनुसार, सावन में हरी चूड़ियों की मांग में लगभग 15% तक वृद्धि देखी जा रही है. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि एक दशक पहले की तुलना में अब चूड़ियों की मांग में कुछ गिरावट आयी है. थोक बाजार में बिना नग जड़ित हरी चूड़ियां 22 से 25 रुपये प्रति डिब्बा, जबकि नग जड़ित चूड़ियां गुणवत्ता के अनुसार 35 से 75 रुपये प्रति डिब्बा की दर से बिक रही हैं. इधर साड़ियों के खुदरा कारोबारी प्रवीण मोर ने बताया कि सावन में हरे रंग की सूती साड़ियों की मांग सबसे अधिक होती है. इस बार खुदरा बाजार में ये साड़ियां 300 से 1200 रुपये प्रति पीस की दर से बिक रही हैं. उन्होंने बताया कि अब तक साधारण दिनों की तुलना में लगभग 5% वृद्धि दर्ज की गयी है.

धार्मिक, पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व से जुड़ा है हरे रंग का शृंगार

सावन मास को भगवान शिव को समर्पित माना गया है. इस पावन महीने में सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र और परिवार की समृद्धि के लिए व्रत करती हैं और हरे रंग की चूड़ियां व साड़ियां पहनकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं. वहीं, कुमारी कन्याएं मनचाहा वर पाने की कामना से यह परंपरा निभाती हैं. धार्मिक ग्रंथों, विशेष रूप से शिवपुराण में उल्लेख है कि माता पार्वती ने कठोर तप के दौरान भी हरे वस्त्र धारण किये थे. पार्वतीजी को हरियाली और सौंदर्य की देवी माना जाता है, और हरा रंग प्रकृति, नयापन और नव जीवन का प्रतीक है. आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी हरा रंग शांति, संतुलन और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है. वर्षा ऋतु के दौरान जब प्रकृति हरियाली से भर जाती है, तब महिलाएं भी हरे शृंगार के माध्यम से अपने जीवन में सुख-शांति व समृद्धि की कामना करती हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सावन में माता पार्वती ने कठोर व्रत कर शिवजी को पति रूप में प्राप्त किया था. उस समय देवियों ने उन्हें हरे वस्त्र व हरी चूड़ियों से शृंगारित किया, तभी से यह परंपरा चली आ रही है.

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