डाॅ प्रमोद कुमार वर्मा, गुरुआ. प्रसिद्ध बौद्ध स्थल भुरहा से करीब 12 किलोमीटर और बोधगया से लगभग 36 किलोमीटर दूर स्थित देवकली गांव जिले के सबसे प्राचीन गांवों में से एक माना जाता है. इस गांव का इतिहास लगभग 10 हजार वर्ष पुराना बताया जाता है. यहां की आबादी करीब 10 हजार है, लेकिन इस गांव की असली पहचान इसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और धार्मिक महत्ता है. स्थानीय बोलचाल में इसे लोग ””देकुली”” भी कहते हैं. माना जाता है कि यह गांव शाकद्वीप ब्राह्मणों को प्राप्त 72 पुरों में से एक, देवकुलिआर पुर था. कहा जाता है कि महाकवि वाणभट्ट और मयूर भट्ट, जो संस्कृत साहित्य के विख्यात रचनाकार माने जाते हैं और कादंबरी जैसे ग्रंथ के लेखक हैं, यहीं की भट्टीय ब्राह्मण वंश परंपरा से थे. उनकी रचनाएं आज भी शास्त्री आचार्य पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं.
हिंदू तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र
करीब 50 वर्ष पूर्व तक देवकली को हिंदू तंत्र क्रिया का केंद्र कहा जाता था. यह स्थान न केवल तांत्रिक साधना का केंद्र था, बल्कि धर्म से जुड़े निर्णय भी यहीं लिए जाते थे. यहां स्थित विशाल गढ़, हालांकि अब अतिक्रमण की चपेट में है, पर इसके अवशेष आज भी इतिहास और पुरातत्व में रुचि रखने वालों के लिए जिज्ञासा का विषय बने हुए हैं.
500 साल पुराना तालाब और धार्मिक परंपराएं
बौद्ध विरासत और शोध की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण
देवकली बाजार में स्थित भगवान बुद्ध की साढ़े तीन फीट ऊंची और ढाई फीट चौड़ी मूर्ति विशेष आकर्षण का केंद्र है. यह चमकदार काले पत्थर से निर्मित मूर्ति बौद्ध विरासत की ओर संकेत करती है. बौद्ध अवशेषों पर शोध कर रहीं रूपा रंजन के अनुसार, भले ही यहां भगवान बुद्ध के आगमन का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण न हो, लेकिन ऐतिहासिक दृष्टिकोण से यह स्थान बौद्ध धर्म के उप-प्रचारक केंद्र के रूप में कार्यरत था. मुख्य प्रचार केंद्र भुरहा-दुब्बा में था. देवकली के लोग भले ही बौद्ध धर्म में दीक्षित न हुए हों, पर उन्होंने भगवान बुद्ध को विष्णु का नौवां अवतार मानते हुए पूजना आरंभ कर दिया था.
पुरातात्विक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण
गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक
देवकली गांव न केवल ऐतिहासिक, पौराणिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हिंदू-मुस्लिम एकता और गंगा-जमुनी सभ्यता का भी जीवंत उदाहरण है. यहां की सांस्कृतिक समरसता आज भी लोगों के जीवन में परिलक्षित होती है.
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