बिहार का वो गांव जहां हर गली से निकलता है एक IITian, अब बन रहा है पूरे देश के लिए उदाहरण!

Bihar: बिहार के एक छोटे से गांव ने वो कर दिखाया है, जो बड़े-बड़े कोचिंग हब भी नहीं कर पाते. हर साल यहां की गलियों से निकलते हैं दर्जनों IITians, जिनकी मेहनत और जज्बा साबित करता है कि सपना बड़ा हो, तो संसाधन मायने नहीं रखते.

By Anshuman Parashar | April 23, 2025 12:09 PM
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Bihar: बिहार के गया जिले के पटवा टोली गांव से इस बार JEE मेन्स 2025 के सेकंड सेशन में 40 छात्रों ने क्वालिफाई किया है. इनमें से 18 अब JEE एडवांस्ड में किस्मत आजमाएंगे. ये नतीजे इस बात की मिसाल हैं कि मेहनत, जिद और सही दिशा हो, तो संसाधनों की कमी कोई मायने नहीं रखती.

जिस गांव में कभी करघे चलते थे, वहां अब हर साल निकलते हैं IITian

कभी कपड़ा बुनाई के लिए पहचाना जाने वाला पटवा टोली अब ‘इंजीनियरों की फैक्ट्री’ बन चुका है. यहां की गलियों में अब करघों की नहीं, किताबों की आवाजें गूंजती हैं. पटवा टोली में शायद ही कोई घर ऐसा हो, जहां से इंजीनियर न निकला हो.

JEE मेन 2025 में गांव के टॉप स्कोरर

इस साल गांव के होनहारों में शरण्या ने 99.64 पर्सेंटाइल, अशोक ने 97.7, यशराज ने 97.38, शुभम और प्रतीक ने 96.55, केतन ने 96.00, निवास ने 95.7 और सागर कुमार ने 94.8 पर्सेंटाइल स्कोर किया है. सागर के पिता के देहांत के बाद मां ने सूत कातकर पढ़ाई का खर्च उठाया. अब वही बेटा JEE मेन क्रैक कर चुका है और देश की सेवा करने का सपना देख रहा है.

आईआईटीयनों की मुहिम, जो बदल रही है गांव की तक़दीर

2013 में गांव के IIT ग्रेजुएट्स ने मिलकर ‘वृक्ष’ नाम की संस्था बनाई, जहां छात्रों को मुफ्त कोचिंग, किताबें और ऑनलाइन क्लासेस दी जाती हैं. इसे चलाने वाले शिक्षक खुद आईआईटी से पढ़े हैं और अब दिल्ली-मुंबई से बच्चों को गाइड करते हैं.

संस्था के अध्यक्ष दुबेश्वर प्रसाद कहते हैं, “हमारे मॉडल में गरीब बच्चों के लिए ऑनलाइन लाइब्रेरी है, जहां हर बच्चा पढ़ सकता है. यही वजह है कि आज पटवा टोली को ‘आईआईटीयनों का गांव’ कहा जाता है.”

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लड़कियों की उड़ान अब नीट की तैयारी भी यहीं से

छात्रा नंदिनी कहती हैं, “पहले हमें गांव से बाहर नहीं जाने दिया जाता था, लेकिन अब हम भी नीट की तैयारी कर पा रहे हैं. मेरे पापा मैकेनिक हैं, मम्मी पावरलूम में काम करती हैं लेकिन अब पूरा गांव साथ है.” 31 साल पहले जितेंद्र पटवा के IIT में चयन से जो सिलसिला शुरू हुआ था, वो अब पूरे गांव की पहचान बन चुका है. अब यहां न करघे की पहचान बची है, न पिछड़ेपन की यहां है सिर्फ मेहनत, शिक्षा और कामयाबी की सुनहरी तस्वीर.

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