क्या बोले डॉक्टर
सुपर स्पेशलिटी में तैनात यूरोलॉजिस्ट डॉ गौरव मिश्रा ने बताया कि मरीज की किडनी की राइट साइड में स्टोन था. मरीज की किडनी से स्टोन निकालने के लिए किसी तरह का चीरा नहीं लगाया गया है. एक्स्ट्रा कॉरपोरियल शॉक वेव लिथोट्रिप्सी (इएसडब्ल्यूएल) की प्रक्रिया में पथरी का पता लगाने के लिए एक्स-रे या अल्ट्रासाउंड का सहयोग लिया जाता है. उच्च-ऊर्जा शॉक तरंगों को पथरी की ओर निर्देशित किया जाता है. ये तरंगें मरीज के त्वचा से होकर गुजरती हैं और पथरी को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ देती हैं. उन्होंने बताया कि पथरी को तोड़ने का काम नीचे से किया जाता है. ताकि, छोटे-छोटे टुकड़े में पथरी विभाजित होकर मूत्र के माध्यम से बाहर निकल जाये. उन्होंने बताया कि इसकी पूरी प्रक्रिया में एक घंटे का समय लगता है. मरीज को ज्यादा देर तक बेड पर नहीं रहना रहता है.
पहला दिन दिखी सभी के चेहरे पर व्यस्तता
सबसे पहला ऑपरेशन के समय सभी के चेहरे पर काफी व्यस्तता झलक रही थी. मशीन आदि को सेट कर पथरी तोड़ने की प्रक्रिया शुरू होने के बाद सभी ने चैन की सांस ली. अस्पताल अधीक्षक डॉ केके सिन्हा व सुपर स्पेशलिटी के नोडल अधिकारी डॉ एसएन सिंह ने बताया कि सुपर स्पेशलिटी में सबसे बढ़िया मशीन जर्मनी से मंगायी गयी है. इस इएसडब्ल्यूएल मशीन से इलाज शुरू होने के बाद मरीज को काफी सहूलियत हो रही है. फिलहाल, यहां पर ऑपरेशन का कोई चार्ज नहीं लिया जाता है. उन्होंने बताया कि फिलहाल यहां दो विभाग न्यूरोसर्जरी व यूरोलॉजी में मरीज भर्ती की प्रक्रिया शुरू की गयी है. इन दोनों विभाग के अलावा कार्डियोलॉजी में ओपीडी चलाया जा रहा है.
इस दौरान यूरोलॉजिस्ट डॉ गौरव कुमार मिश्रा, सर्जन डॉ संजय कुमार, उपाधीक्षक डॉ एनके पासवान, एनेस्थेटिक डॉ दीपक कुमार, हेल्थ मैनेजर संतोष कुमार सिन्हा, वार्ड स्टाफ राकेश कुमार, स्टाफ नर्स ललन कुमार व मृदुला कुमारी आदि मौजूद रहे.
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