पटना: मां दुर्गा के उपासना का पर्व गुप्त नवरात्र रविवार से शुरू हो रहा है. शारदीय नवरात्र की तरह इसमें भी कलश स्थापना कर मां दुर्गा की पूजा की जाती है. पूजा को लेकर बिहार के पटना, भागलपुर, बक्सर और रोहतास के देवी मंदिर में खास तैयारियां शुरू हो गयी है.
मुजफ्फरपुर के भष्मीदेवी मंदिर में जोरों पर तैयारियां
गुप्त नवरात्रि पर देवी के भक्त घर पर भी कलश स्थापना कर नौ दिनों तक मां की उपासना करेंगे. भष्मीदेवी मंदिर के मुख्य पुजारी पं. रविशंकर दूबे ने कहा कि गुप्त नवरात्र में भक्तों को कलश स्थापना कर शारदीय नवरात्र की तरह नौ दिनों तक उपासना करना चाहिए और मां के विभिन्न रूपों के अनुसार भोग लगाना चाहिए.
नवरात्र की तिथि
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प्रतिपदा – 22 जनवरी
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द्वितीया – 23 जनवरी
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तृतीया – 24 जनवरी
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चतुर्थी – 25 जनवरी
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पंचमी – 26 जनवरी
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षष्ठी – 27 जनवरी
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सप्तमी – 28 जनवरी
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अष्टमी – 29 जनवरी
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नवमी – 30 जनवरी
पटनदेवी और शीतला मंदिर में भी होगी देवी की पूजा
गुप्त नवरात्रि पर पटना के पटनदेवी और शीतला देवी मंदिर में भी खास तरीके से पूजा की जाएगी. पटन देवी में देवी आराधना के लिए सुबह से ही देवी का द्वार भक्तों के लिए खोल दिया जाएगा. बता दें कि इस मंदिर में नवरात्रि में काफी भीड़ होती है. बताया जाता है कि यहां देवी सती की दाहिनी जांघ गिरी थी. मंदिर में महाकाली, महालक्ष्मी और महा सरस्वती की तीन प्रतिमाएं स्थापित है.
मधुबनी स्थित मां काली का सिद्धपीठ मंदिर
बिहार के मधुबनी जिले के बेनीपट्टी गांव में स्थित मां काली का सिद्धपीठ, उच्चैठ भगवती का मंदिर में भी गुप्त नवरात्रि को लेकर विशेष तैयारियां की गयी है. उच्चैठ भगवती मंदिर का ऐतिहासिक महत्व है. कहा जाता है कि यहां महान कवि कालिदास को माता काली ने वरदान दिया था. जिसके बाद मूर्ख कालिदास मां का आशीर्वाद पाकर ही महान कवि के रूप में विख्यात हुए थे. इस मंदिर में माता का सिर्फ कंधे तक का हिस्सा ही नजर आता है. माता का सिर नहीं होने के कारण इन्हें छिन्नमस्तिका दुर्गा के नाम से भी जाना जाता है.
चंडिका स्थान मुंगेर
मुंगेर जिला स्थित गंगा मां चंडिका का मंदिर भी गुप्त नवरात्रि को लेकर जोर-शोर से तैयारियां की जा रही है. मंदिर के पुजारियों के मुताबिक यह मंदिर का देशभर में अलग ही स्थान है. इसके पूर्व और पश्चिम में श्मशान है. कहा जाता है कि यहां मां सती की दाई आंख गिरी थी. यहां पर सोने में गढ़ी आंख स्थापित है. यहां आंखों के पीड़ित रोग से पूजा करने आते हैं और यहां से काजल लेकर जाते हैं. चंडिका देवी मंदिर के बारे में बताया जाता है कि लंका विजय के बाद भगवान राम ने यहां पर देवी की पूजा की थी.
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