क्या बोले याचिकाकर्ता
मामले में याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट को बताया गया कि पटना मेट्रो परियोजना को लेकर शहर में करीब 75 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया है. जिससे सैकड़ों लोग बेघर हो गये हैं. राज्य सरकार ने उनके पुनर्वास के लिए कोई कदम भी नहीं उठाया है. यहां तक कि सरकार द्वारा मुआवजा राशि भी काफी कम दर पर दी जा रही है.
क्या बोले सरकारी वकील
दूसरी ओर याचिका का विरोध करते हुए सरकारी वकील किंकर कुमार ने अदालत को बताया कि 2016 में राज्य कैबिनेट ने शहर में पटना मेट्रो रेल परियोजना के लिए रतनपुरा और आईएसबीटी (पटलीपुत्र बस टर्मिनल) के पश्चिम में दो डिपो बनाने का निर्णय लिया था. लेकिन बाद में राज्य मंत्रिमंडल द्वारा 2020 में दो मेट्रो डिपो के बजाय केवल एक डिपो बनाने का निर्णय लिया गया. इस डिपो के निर्माण के लिए 75 एकड़ भूमि का अधिग्रहण करने का निर्णय लिया गया, जिसमें से 50 एकड़ पहाड़ी और 25 एकड़ रानीपुर में है
लाखों लोगों की सुविधा के लिए पटना मेट्रो महत्वपूर्ण
किंकर कुमार ने कहा कि मेट्रो की यह परियोजना पटना शहर के करीब 22 लाख लोगों और बाहर से आने वाले लाखों लोगों की सुविधा के लिए काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है. उन्होंने कोर्ट को बताया कि अब तक इस प्रोजेक्ट पर करीब 1300 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं. ऐसे में भूमि अधिग्रहण मामले में हस्तक्षेप करना ठीक नहीं होगा. उन्होंने हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए इस अधिग्रहण को सही ठहराया.
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6 महीने में नई दर से मुआवजा देने का आदेश
कोर्ट ने इस मामले में सभी पक्षों की दलीलें सुनने और लंबी सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. गुरुवार को फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि जनहित में लिए गए फैसलों और अधिग्रहण की कार्रवाई में कोर्ट कोई दखल नहीं देगा. लेकिन कोर्ट ने राज्य सरकार को भूमि मुआवजे की नयी दर तय करने का आदेश दिया. साथ ही जमीन मालिकों को 6 महीने के अंदर तय की गई नई दर से मुआवजा देने का आदेश दिया.
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