संतान प्राप्ति की कामना ले आते हैं भक्त
ऐसी मान्यता है कि सिद्ध पीठ के रूप में विख्यात मां नेतुला मंदिर में सती की पीठ की पूजा होती है. नवरात्र के दौरान मां नेतुला की पूजा का विशेष महत्व है. मां नेतुला श्मशान भूमि पर विराजती हैं और नवरात्र के दौरान महाष्टमी की रात्रि श्मशान में निशा पूजा के बाद बलि दी जाती है. मान्यता है कि मां के दरबार में मांगी गयी मुराद माता की कृपा से पूरी हो जाती है. मां नेतुला को नेत्र व पुत्र प्रदाता देवी भी कहा जाता है. सालों भर नेत्र रोग से पीड़ित व संतान प्राप्ति की कामना लिए आने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. मां नेतुला के दरबार में कष्टी देने से नेत्र से संबंधित विकार दूर होने की मान्यता है. वहीं भक्तों को संतान सुख भी मिलता है.
जैन धर्म के पवित्र ग्रंथ कल्पसूत्र में मिलता है वर्णन
मां नेतुला मंदिर के इतिहास के संबंध में कोई सटीक विवरण उपलब्ध नहीं है. लेकिन किवदंतियों के मुताबिक मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है. मां नेतुला मंदिर के इतिहास से संबंधित एक प्रामाणिक जानकारी जैन धर्म के पवित्र ग्रंथ कल्पसूत्र में मिलता है. जो मां नेतुल मंदिर के पौराणिक काल के होने की पुष्टि करता है.कल्पसूत्र के अनुसार जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर ने जब ज्ञान की प्राप्ति के लिए गृहत्याग किया था, तो क्षत्रिकुण्ड से निकल कर उन्होंने पहला रात्रि विश्राम कुर्मार नामक ग्राम में एक देवी मंदिर के समीप वट वृक्ष के नीचे किया था. गृह त्याग के उपरांत पहले रात्रि विश्राम के बाद श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने दूसरे दिन यहीं से वस्त्र त्यागकर आगे प्रस्थान किया था.कल्पसूत्र में वर्णित कुर्मार गांव को ही आज कुमार के नाम से जाना जाता है. लगभग 26 सौ वर्षों से भी ज्यादा पुरानी इस घटना और कल्पसूत्र में वर्णित देवी मंदिर व बलि प्रथा का वर्णन इस मंदिर के पौराणिक काल के होने का स्पष्ट प्रमाण है.
नवरात्र में उमड़ती है कष्टी देनेवालों भीड़
मां नेतुला के दरबार में प्रत्येक मंगलवार व शनिवार को भक्तों की भीड़उमड़तीहै. वहीं नवरात्र के दौरान मां नेतुला के दरबार की महत्ता और भी बढ़ जाती है. नवरात्र के दौरान हजारों की संख्या में श्रद्धालु माता के दरबार में कष्टी देने आते हैं. भक्त नवरात्र के दौरान नौ दिनों तक पूर्णरूपेण फलाहार पर रह कर माता के दरबार में दंडवत कष्टी देते पूजा-अर्चना करते हैं. मंदिर परिसर की साफ सफाई करते हैं. मां नेतुला के दरबार में दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन को आते हैं.
महाष्टमी को लगता है मेला, होती है विशेष पूजा
नेतुला मंदिर में नवरात्रि की महाअष्टमी को महानिशा काल में विशेष पूजा होती है. भक्तों की भीड़ उमड़ती है. बिहार, झारखंड समेत कई राज्यों से श्रद्धालु माता के दरबार में हाजिरी लगाने पहुंचते हैं. माता का भव्य शृंगार होता है. वहीं महानिशा पूजा के उपरांत मंदिर का द्वार श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया जाता है. इस अवसर पर मां नेतुला को खोंइछा भर कर हजारों की संख्या में महिला श्रद्धालु मनवांछित फल की कामना करती हैं. निशा पूजा के उपरांत हजारों की संख्या में बकरे की बलि दी जाती है.
सिकंदरा से चार किमी दूर है मां नेतुला मंदिर
मां नेतुला के दर्शन के लिए सबसे पहले जमुई जिला अंतर्गत सिकंदरा पहुंचना होगा. जमुई रेलवे स्टेशन से सिकंदरा की दूरी 30 किलोमीटर है. वहीं लखीसराय रेलवे स्टेशन से सिकंदरा की दूरी करीब 25 किलोमीटर है. जमुई स्टेशन व लखीसराय से सिकंदरा आने के लिए बस सुविधा उपलब्ध है. इसके अलावा नवादा व शेखपुरा से भी सिकंदरा के लिए सीधी बस सेवा उपलब्ध है. सिकंदरा पहुंचने के बाद यहां से चार किलोमीटर दूर कुमार स्थित मां नेतुला मंदिर पहुंचने के लिए ऑटो हमेशा उपलब्ध रहता है.