Prashant Kishor Viral Video: जनसुराज के अगुआ प्रशांत किशोर (पीके) रविवार, 18 मई को अपने ‘बिहार बदलाव हस्ताक्षर अभियान’ के तहत नालंदा पहुंचे. लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पैतृक गांव कल्याण बिगहा की दहलीज़ पर ही प्रशासन ने उन्हें रोक दिया. हालात तब तनावपूर्ण हो गए जब अनुमंडल दंडाधिकारी (SDM) और पीके के बीच सड़क‑किनारे तीखी बहस छिड़ गई.
“इत्मीनान से रहो… लिखित कारण दो”
घटनाक्रम का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है. बहस में पीके ने अधिकारी से कहा, “नए अफ़सर बने हो, इत्मीनान से रहो. रोकने का कारण लिखकर दो, वरना नौकरी चली जाएगी.” जवाब में SDM ने स्पष्ट किया कि बिना पूर्व अनुमति गांव में प्रवेश भीड़‑भाड़ और क़ानून‑व्यवस्था की समस्या खड़ी कर सकता है. इस पर प्रशांत किशोर ने पलटवार किया, “धारा‑144 तो लागू नहीं. क्या किसी भारतीय को गांव जाने के लिए इजाज़त लेनी पड़ेगी?” उन्होंने लिखित रोक‑आदेश की मांग करते हुए कहा, “हम किसी धरना‑प्रदर्शन के लिए नहीं, दलित परिवारों की हालत देखने आए हैं.”
#WATCH नालंदा, बिहार: जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर को उनकी पार्टी के 'सिग्नेचर अभियान' के दौरान नालंदा जिले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह गांव कल्याण बिगहा में प्रवेश करने से रोक दिया गया।
— ANI_HindiNews (@AHindinews) May 18, 2025
SDM के साथ हुई बातचीत में प्रशांत किशोर ने कहा, "… क्या आप मुझे गांव… pic.twitter.com/hjvEeBvQ0E
प्रशासन की दलील: अनुमति सिर्फ़ बिहार शरीफ मैदान के लिए
SDO काजले वैभव नितिन ने बाद में बताया कि जनसुराज को 8 हज़ार लोगों की सभा करने की इजाज़त बिहार शरीफ के श्रम कल्याण मैदान के लिए दी गई है. “कल्याण बिगहा में मास गैदरिंग की अनुमति नहीं है. तय स्थल पर ही कार्यक्रम करें.” गांव की सीमा पर पुलिस पिकेट लगाया गया. ग्रामीणों को पहचान पत्र दिखाने पर प्रवेश है. जबकि जनसुराज कार्यकर्ताओं को रोक दिया गया.
पीके का आरोप: “सरकार डर गई, अपने ही गांव से रोक रही”
गांव में न घुस पाने से नाराज़ पीके ने बिहार शरीफ की जनसभा में तीखे आरोप लगाए. “नीतीश कुमार की सरकार इतनी डरी हुई है कि मुख्यमंत्री के गांव में किसी को दलित‑महादलित परिवारों की हकीकत देखने नहीं दे रही. अगर विकास है तो दरवाज़े क्यों बंद?” उन्होंने दावा किया कि 2008 के बाद से सरकार 3 डिसमिल ज़मीन बांटने का दावा करती रही है. वे देखना चाहते थे कि कल्याण बिगहा के दलित परिवारों को वाक़ई पट्टा मिला या नहीं. साथ ही भूमि सर्वे और दाखिल‑खारिज में कथित घूसखोरी की शिकायतों पर ग्रामीणों से सीधी बात करने का इरादा था.
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