भभुआ सदर… बिहार सरकार आंतरिक या अन्य स्रोतों से सूबे की स्वास्थ्य व्यवस्था सुधारने की कोशिश में लगी हुई है. इसके लिए शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित चिकित्सकीय संस्थानों में डॉक्टर, दवा से लेकर शारीरिक जांच के उपकरण की भी व्यवस्था की जा रही है. जिले के सबसे बड़े सदर अस्पताल में भी सिटी स्कैन मशीन, इसीजी, सीसीयू और डायलिसिस मशीन, डिजिटल एक्सरे सहित बेड तक ऑक्सीजन पहुंचाने आदि की व्यवस्था तो कर दी गयी है, लेकिन सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर और जांच पड़ताल करने वाले कर्मियों की वर्षों से कमी मरीजों के इलाज में बाधक बनी हुई है. स्वास्थ्य व्यवस्था पर बिहार सरकार की सजगता और दिशा निर्देशन के बावजूद भभुआ सदर अस्पताल की आंतरिक व्यवस्था में खास परिवर्तन नहीं हो पा रहा है. हालांकि, समय व व्यवस्था बदलने के साथ कैमूर जिले में सरकारी स्वास्थ्य सेवा का बाहरी ढांचा तो बदला, लेकिन आंतरिक ढांचे में खास परिवर्तन नहीं हो सका है. नतीजा गंभीर मरीजों को कम से कम 80 किलोमीटर दूर वाराणसी या 180 किलोमीटर पटना जाकर इलाज करना अब भी मजबूरी बना हुआ है. जिले के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल यानी जिला मुख्यालय स्थित सदर अस्पताल की ही बात ले लें, तो इस अस्पताल को करोड़ों की लागत से 200 बेड वाला चकाचक व बड़ा भवन तो मिल गया. लेकिन, चिकित्सीय सेवा के मद्देनजर जो व्यवस्था होनी चाहिए वह आज तक व्यवस्थित नहीं हो पायी है. जब यह अस्पताल अनुमंडल अस्पताल के रूप में था तब भी यहां चिकित्सकों व कर्मियों की घोर कमी थी और जब इसे सदर अस्पताल का ओहदा मिला, तब भी यह कमी पूरी नहीं हो पायी है. इसके अतिरिक्त अन्य सुविधाएं भी यहां सिर्फ और सिर्फ दिखावे भर के है, क्योंकि अगर इमरजेंसी वाले मरीज पहुंच गये तो यहां सिर्फ और सिर्फ रेफर के अलावा कोई चारा नहीं बचता. सदर अस्पताल के इमरजेंसी में वैसे ही मरीज का इलाज होता है, जो गंभीर नहीं होता है. =इलाज नहीं रेफर पर करते हैं अधिक विश्वास गौरतलब है कि अक्सर दुर्घटना से या अन्य किन्ही कारणों से गंभीर मरीज इलाज के लिए सदर अस्पताल पहुंचते हैं, डॉक्टर वैसे मरीजों को केवल देखने और तात्कालिक सहायता उपलब्ध कराने भर की जहमत उठाते हैं. पूर्व में जिले के शीर्ष अधिकारियों ने सदर अस्पताल से गंभीर मरीजों को रेफर किये जाने पर काफी नाराजगी जाहिर की थी और कहा था कि अस्पताल में सभी व्यवस्था रहने के बावजूद मरीज क्यों रेफर किये जाते हैं. रेफर के बाद अमीर तो अपना इलाज वाराणसी आदि जाकर करा लेते है, लेकिन गरीब बाहर जाकर इलाज कराने में असमर्थ होते हैं. उन्होंने उस दौरान किसी भी गंभीर मरीज को रेफर किये जाने से पूर्व बोर्ड का गठन करने का निर्देश दिया था. लेकिन ,शीर्ष अधिकारियों के आदेश के बावजूद यह अब तक सदर अस्पताल में यह सिस्टम लागू नहीं हो पाया है और आज भी दुर्घटना या अन्य आपदा से घायल मरीजों से पिंड छुड़ाने के लिए डॉक्टर रेफर करने में ही अपनी भलाई समझते हैं. =मरीजो को दी जाती हैं उपलब्ध हर सुविधा इस मामले में डीएस डॉ विनोद कुमार ने बताया कि जो मरीज संभलने लायक होते हैं उनपर पूरी मेहनत की जाती है. लेकिन जिन मरीजों के इलाज की सुविधा यहां उपलब्ध नहीं हो पाती, उन्हें बाहर रेफर किया जाता है. अस्पताल में साधारण से लेकर गंभीर मरीजों का इलाज किया जा रहा है. कुछ कमियां है जिसे दूर करने का प्रयास किया जा रहा है. ..सरकारी स्वास्थ्य सेवा का बाहरी ढांचा बदला, पर आंतरिक में कमी डॉक्टर व जांच-पड़ताल करने वाले कर्मियों की कमी बनी मरीजों के इलाज में बाधक
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