भभुआ. भारत माला परियोजना के तहत जिले में बनाये जाने वाले कोलकाता-वाराणसी एक्सप्रेसवे के निर्माण में अधिग्रहित भूमि के उचित मुआवजा तथा अन्य मांगों को लेकर किसान संघ द्वारा बगैर उचित मुआवजा के भुगतान किये किसानों के जमीन पर सरकार को जबरन दखल नहीं करने की सलाह दी गयी है. इसे लेकर गुरुवार को किसान संघर्ष मोर्चा कैमूर द्वारा नये जिलाधिकारी सुनील कुमार को एक ज्ञापन सौंपा गया. इसमें छह सूत्री मांगों का जिक्र किया गया है. इधर, किसान संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष विमलेश पांडेय, मुखिया श्रवण पटेल आदि द्वारा डीएम को दिये गये आवेदन में छह सूत्री मांगों का जिक्र किया गया. इसमें पहली मांग प्रमंडलीय आयुक्त सह आब्रिट्रैटर द्वारा मुआवजा बढाये जाने के फैसले की सच्ची प्रतिलिपि जिला प्रशासन द्वारा किसानों को उपलब्ध कराये जाने, बगैर उचित मुआवजा का भुगतान किये किसानों की जमीन पर बरन दखल नहीं किया जाये, भूमि सुधार व राजस्व विभाग बिहार सरकार के अपर सचिव द्वारा पूर्व में भूमि के प्रकृति के निर्धारण को लेकर जारी आदेश को मान्य किया जाना, लोक लाइन्स एक्ट के तहत विभिन्न मौजों का मुआवजा भुगतान बढ़ाये जाने, पूर्व जिलाधिकारी द्वार एक्सप्रेसवे के सहायक पथ बनाये जाने के दिये गये आश्वासन पर अमल किया जाना तथा रामपुर अंचल के रामपुर मौजा में एक्सप्रेसवे पास करने के लिए उपरी व्यवस्था बनाये जाने का उल्लेख किया गया है. इन्सेट सुलझते-सुलझते फिर उलझता जा रहा एक्सप्रेसवे का काम भभुआ. जिले में 52 किलोमीटर की दूरी नापने वाला भारत माला परियोजना प्रोजेक्ट का कोलकाता-वाराणसी एक्सप्रेसवे का निर्माण कार्य सुलझते-सुलझते फिर उलझता जा रहा है. गौरतलब है कि इस एक्सप्रेसवे निर्माण में सरकार द्वारा अधिग्रहित भूमि के उचित मुआवजा को लेकर किसान पिछले तीन सालों से संघर्ष कर रहे हैं. इसके तहत धरना-प्रदर्शन, सडक जाम, एनएचएआइ और उसके पदाधिकारियों का पुतला दहन, समाहरणालय पर ताला बंदी, रोड मार्च आदि से लेकर एक्सप्रेसवे निर्माण का काम रोकने जैसे भी कदम उठाये जा चुके हैं. किसानों का कहना है कि सरकार व्यवसायिक और आवासीय भूमि को कृषि भूमि का दर्जा देकर किसानों को ठगने का मंसूबा पाले हुई है. ऊपर से 10 वर्ष पुराने सर्किल रेट पर मुआवजा भुगतान का मानक बनाया गया. इधर, किसानों के मांगों को लेकर वर्ष 2025 में पूर्व डीएम द्वारा किसानों को विश्वास में लेकर, समझा बुझा कर, मुआवजा दर को दोगुना कराने, कैंप लगाकर किसानों का दस्तावेज सुधारने और आवेदन लेने आदि की कार्रवाई से किसान थोड़ा नरम हुए थे और एक्सप्रेसवे निर्माण में भू मापी, मिट्टी जांच, समतली करण आदि करने के काम पर सहमति प्रदान किये थे. लेकिन, जैसे ही मामला थोड़ा आगे बढ़ा, वैसे ही कुछ माहों बाद ही फिर यह मामला भूमि की श्रेणी, आब्रिट्रेटर की अदालत के सुनवाई की नकल आदि मांगों को लेकर उलझ गया है. यही नहीं दो दिन पहले बुधवार को किसान संगठनों द्वारा किसानों के साथ बैठक में एक बार फिर एक्सप्रेसवे निर्माण का काम जिले में नहीं होने देने का किसानों ने एलान कर दिया है. मिलाजुला कर यह मामला जिला प्रशासन और सरकार के लिए भी जटिलताओं के चक्र व्यूह में घूमता नजर आता है.
संबंधित खबर
और खबरें