कांग्रेस से होते हुए जदयू में आये गिरिधारी यादव ने बांका से रिकार्ड चौथी जीत की हासिल

गिरिधारी यादव ने 2024 का संसदीय चुनाव जीतकर बांका से सबसे अधिक चार बार सांसद का चुनाव जीतने का रिकार्ड भी अपने नाम दर्ज कर लिया है.

By Prabhat Khabar News Desk | June 5, 2024 12:04 AM
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शेखर सिंह. बांका. गिरिधारी यादव ने एक बार फिर बांका लोकसभा का चुनाव जीतकर अपने राजनीतिक प्रोफाइल में एक नयी उपलब्धि जोड़ ली है. 2024 का संसदीय चुनाव जीतकर इन्होंने बांका से सबसे अधिक चार बार सांसद का चुनाव जीतने का रिकार्ड भी अपने नाम दर्ज कर लिया है.

जानकार कहते हैं कि बांका के राजनीतिक समझ के सामने कोई नेता नहीं टिक रहा है. इनका हर दल में अपने करीबी लोग हैं. सभी दलों का यह पैंतरा बखूबी समझते हैं. यहां के प्रति इनका दूरदर्शी आकलन रहता है. यही वजह है कि दल-बदल और पार्टी में अंदरुणी विरोध के बावजूद बांका में इनका सितारा हमेशा बुलंदी पर रहा.

22 वर्ष के उम्र में शुरु किया था सियासी सफर

गिरिधारी यादव का जन्म 14 अप्रैल 1961 में एक साधारण परिवार में हुआ था. गिरिधारी यादव ने अपना सियासी सफर 20-22 वर्ष की उम्र में शुरु कर दी थी. यादव का प्रारंभिक राजनीतिक पाठशाला कांग्रेस पार्टी रही. वर्ष 1983-85 के बीच यह यूथ कांग्रेस के कॉर्डिनेटर थे. मध्य प्रदेश के सागर जिला का इन्हें भार सौंपा गया था. जब वीपी सिंह कांग्रेस से अलग हुए तो इन्होंने भी इस दल से किनारा कर लिया. मसलन, अगली राजनीतिक पारी बांका में जनता दल के साथ ही शुरु की. गिरिधारी यादव वर्ष 1995 में पहली बार कटोरिया विधानसभा में जीत का स्वाद चखकर बांका के सियासी मैदान में मजबूत कदम रख दिया. ठीक एक साल बाद वर्ष 1996 में हुए लोकसभा चुनाव में बतौर जनता दल के टिकट पर चुनाव में खड़े हुए और जीत गये. काफी कम उम्र में सांसद बन गये. वर्ष 1996 के बाद हुए दो लगातार लोकसभा चुनाव में इनकी हार हो गयी. वर्ष 2000 में कटोरिया विधायक का चुनाव जीतकर पुनः विधानसभा में वापसी की. लेकिन, इन्होंने संसदीय राजनीतिक के प्रति अपनी इच्छा कभी नहीं छोड़ी. फिर क्या था 2004 में इन्हें राजद ने लोकसभा का टिकट थमा दिया. इस चुनाव में इन्होंने मौजूदा केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह को रोमांचक मुकाबले में हरा दिया था.

शकुनी चौधरी को हराकर की थी बड़ी वापसी

1996 में सांसद का चुनाव जीतने के ठीक बाद 1998 और 1999 में लगातार लोकसभा का चुनाव हुए. 1998 में ये राजद के टिकट पर चुनाव लड़े परंतु दूसरे स्थान पर रहे. इस चुनाव में दिग्विजय सिंह जीत गये थे. एक साल बाद ही 1999 में पुनः दोबारा लोकसभा का आम चुनाव कराया गया, इस चुनाव में राजद ने गिरिधारी यादव के बजाय शकुनी चौधरी को टिकट थमा दिया गया. इसके बाद गिरिधारी यादव निर्दलीय मैदान में आ गये और राजद का माई समीकरण में बड़ी सेंधमारी कर उलट-फेर कर दिया. इस चुनाव में गिरिधारी 2 लाख से अधिक मत लाकर दूसरे स्थान पर रहे. जबकि, शकुनी चौधरी तीसरे पायदान पर खिसक गये. इस चुनाव में भी दिग्विजय सिंह की जीत हुई थी. लेकिन, हार के बावजूद गिरिधारी यादव ने बांका के सियासी क्षेत्र में दमदार वापसी की. इसी चुनाव का नतीजा हुआ कि राजद को आगे चुनाव में इन्हें टिकट देना मजबूरी हो गया.

2009 में लगा सियासी ग्रहण

जदयू से मिली राजनीतिक संजीवनी

बेलहर से बने विधायक

गिरिधारी यादव का सियासी सफर

1995- कटोरिया से विधायक निर्वाचित1996- बांका से सांसद निर्वाचित1998- बांका संसदीय चुनाव में हार1999- बांका निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर हार2000-कटोरिया से विधायक निर्वाचित2004-बांका से सांसद निर्वाचित2009- बांका संदीय चुनाव में हार2010- बेलहर के विधायक निर्वाचित2015-बेलहर के विधायक निर्वाचित2019-बांका से सांसद निर्वाचित2024-बांका से सांसद निर्वाचित

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