हूल दिवस पर पारंपरिक नृत्य व तीरंदाजी प्रतियोगिता

हूल दिवस पर पारंपरिक नृत्य व तीरंदाजी प्रतियोगिता

By AWADHESH KUMAR | July 1, 2025 12:06 AM
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पोठिया. प्रखंड के बुधरा पंचायत स्थित बुधरा डांगी व आमबारी में आदिवासी संघर्ष मोर्चा सामाजिक संगठन के बैनर तले संथाल हूल के अमरनायक सिद्धो कान्हू की याद में सोमवार को हूल दिवस धूम-धाम से मनाते हुए, परंपरा को आगे बढ़ाया गया.आदिवासी समाज के लोगों ने पारंपरिक वेशभूषा से सु -सज्जित होकर समारोह में हिस्सा लिया.समिति के द्वारा इस अवसर पर तीरंदाजी प्रतियोगिता व सांस्कृतिक नृत्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया.जिसका विधिवत उद्घाटन मुख्य अतिथि के तौर में उपस्थित जिला बीस सूत्री सदस्य सह भाजपा नेता संजय उपाध्याय ने तीर चलाकर किया.आयोजित हुल दिवस के अवसर पर समाज को सही दिशा की ओर ले जाने व नशामुक्ति को लेकर शोभा यात्रा भी निकाला गया.जो बुधरा डांगी से चलकर पोठिया बाजार,पोठिया चौक होते हुए पुनः बुधरा डांगी में जाकर समाप्त हुआ.इस दौरान आयोजन को संबोधित करते हुए संजय उपाध्याय ने बताया कि आज के ही दिन हजारों आदिवासियों ने सिद्धो-कान्हू के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका था.बरहेट के पचकठिया में अंग्रेजों द्वारा दोनों भाई सिद्धो और कान्हू को पीपल पेड़ के नीचे फांसी दी गई थी.इस मौके पर शहीद सिद्धो कान्हू को श्रद्धांजलि दी जाती है.हूल दिवस के दिन शहीद हुए उन वीरों को याद किया जाता है.जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ सबसे पहले आवाज उठायी थी. वहीं पोठिया आमबारी में आदिवासी अधिकार संघर्ष मोर्चा सामाजिक संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्वनाथ टुडू के नेतृत्व में हुए इस कार्यक्रम के माध्यम से बताया गया कि संथाल परगना में संताल हूल और संथाल विद्रोह के द्वारा अंग्रेजों को भारी क्षति उठानी पड़ी थी.सिद्धू और कान्हू दो भाइयों के नेतृत्व में 30 जून 1855 को वर्तमान साहिबगंज जिले के भगनाडीह गांव से इस विद्रोह का प्रारंभ किया गया था.इस घटना की याद में प्रतिवर्ष 30 जून को हूल क्रांति दिवस मनाया जाता है. संथाल परगना के भगनाडीह में हूल के मौके पर अंग्रेजों के खिलाफ लोगों ने करो या मरो,अंग्रेजो हमारी माटी छोड़ो के नारे दिए गए थे.कार्यक्रम के दौरान आदिवासी महिलाओं ने पारंपरिक नृत्य कर लोगों का मन मोह लिया. मौके पर समिति के बाबू राम टुडू, राजू हांसदा, राजेन्द्र मुर्मू, सुपौल मुर्मू, मानको टुडू, सोम किस्कु, जवाहर हेम्ब्रम, लखीराम मरांडी, भोगेन सोरेन सहित सैकड़ों स्थानीय लोग व आदिवासी समुदाय की महिला मौजूद थी.

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