पवन कुमार/ Bihar News: मधेपुरा के रानीपट्टी पूर्वी और पश्चिमी टोले के लोगों ने यह ठाना है कि वे मृत्यु भोज और कर्मकांड जैसे आर्थिक बोझ वाले रीति-रिवाजों को अब और नहीं ढोएंगे. गांव के वरिष्ठ नागरिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि मृत्यु के बाद भोज की परंपरा गरीब परिवारों को आर्थिक रूप से तोड़ देती है. कई बार इसके लिए लिये गये कर्ज की भरपाई अगली पीढ़ियां भी नहीं कर पातीं. यहां के अजित प्रसाद बताते हैं-गांव में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहां लोगों ने मां-बाप के निधन पर भोज करने के लिए कर्ज लिया और वर्षों बाद भी उससे उबर नहीं सके. सामाजिक कार्यकर्ता बबलू कुमार के अनुसार-रानीपट्टी में सालाना मृत्युभोज पर 50 लाख से लेकर पांच करोड़ रुपये तक खर्च होते हैं. ये आंकड़े गांव की आर्थिक स्थिति को बयां करने के लिए काफी हैं.
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