Madhubani News : गिले कचरे से बन रहा जैविक खाद, दस रुपये किलो खरीद रहे किसान

बीमारी की वजह बनने के साथ ही कूड़ा-कचरा गांवों की सूरत भी बिगाड़ रहा था, लेकिन अब यही कूड़ा-कचरा कमाई का जरिया बन गया है.

By GAJENDRA KUMAR | June 8, 2025 10:25 PM
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मधुबनी.

बीमारी की वजह बनने के साथ ही कूड़ा-कचरा गांवों की सूरत भी बिगाड़ रहा था, लेकिन अब यही कूड़ा-कचरा कमाई का जरिया बन गया है. खेतों को ””””बलवान”””” बना रहा है. जिले के सभी पंचायतों में वेस्ट प्रोसेसिंग यूनिट बनाए गए हैं. जिनमें घरों से निकलने वाला कूड़ा डालकर जैविक खाद बनाई जा रही है. कंपोस्ट पिटों में तैयार होने वाली खाद खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में प्रयोग में लाई जा रही है. इसे लोहिया स्वच्छ बिहार अभियान एवं स्वच्छ भारत मिशन से जोड़ा गया है.

90 दिन में बनकर तैयार होती है खाद

पंचायत में बनाए गए वेस्ट प्रोसेसिंग यूनिट में खाद भी तैयार की जा रही है. यह जैविक खाद 90 दिन में बनकर तैयार हो जाती है. जैविक खाद तैयार करने की पूरी प्रक्रिया में 90 दिन का समय लग जाता है. सबसे पहले गांव के कचरे को स्टोर कर उसमें से गीला कचरा लग कर लिया जाता है, फिर उसकी कटाई की जाती है. इसके बाद कंपोस्ट पीट में डाला जाता है. उसमें नारियल का छिलका, गोबर एक लेयर, भूसा एक लेयर, फिर एक फीट गीला कचास का लेयर डाला जाता है. उसके बाद इफेक्टिव माइक्रोज का छिड़काव किया जाता है. उसे पंद्रह से बीस दिनों तक छोड़ दिया जाता है. इसके बाद उसे पीट से बाहर निकाला जाता है. फिर उसमें माइक्रोज का छिड़काव किया जाता है. इस तरह से दो से तीन बार किया जाता है. गर्मी के दिनों में 60 दिन एवं सर्दी के दिनों में 90 दिन में जैविक खाद बनकर तैयार हो जाता है.

किसानों के लिए बरदान सिद्ध हो रहा जैविक खाद

कंपोस्ट पीट में तैयार जैविक खाद हम किसानों को दे रहे हैं. यह खाद गार्डन में डाली जा रही है और किसानों को भी दी जा रही है. स्थानीय किसान खाद लेने के लिए आ भी रहे हैं. जैविक खाद खेती, आर्थिक लाभ, स्वास्थ्य एवं पर्यावरण सभी दृष्टि से बेहतर है. इसके प्रयोग से फसल में बीमारियों एवं कीट प्रकोप कम होता है. बताया गया कि कचरे से गांव की स्थिति बदहाल और बदतर हो जाती थी, जो कचरा बीमारियों का घर था. वहीं, कचरा अब लोगों के लिए बरदान सिद्ध हो रहा है.

रासायनिक उर्वरकों की घट रही निर्भरता

यह जैविक खाद मात्र 10 रुपये प्रति किलो की दर से स्थानीय किसानों और शहरी बागवानी प्रेमियों को उपलब्ध कराया जा रहा है. इसकी मांग शहरों तक पहुंच चुकी है. इस पहल से न केवल कचरा प्रबंधन बेहतर हुआ है. बल्कि रासायनिक उर्वरकों की निर्भरता भी घट रही है. यह प्रयास मिट्टी, जल और वायु को प्रदूषण से बचाने में अहम भूमिका निभा रहा है और गांव आदर्श बन गया है.

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