‘मां’ की परिभाषा शब्दों से परे है. ये एक अनंत प्रेम है, जिसकी व्याख्या कोई नहीं कर सकता. यह शब्द स्वयं में ही एक कविता और कहानी है. मां के कई रूप हैं और उसमें धैर्य, प्यार और इतनी फिक्र है कि उसका कर्ज उतारना किसी के वश की बात नहीं. एक बच्चे का मां के गर्भ में पलना बेहद जटिल प्रक्रिया है. इस दौरान मां का शरीर अपने बच्चे के लिए बहुत सारे ऐसे बदलाव करता है, जिसकी कीमत मां अपनी जान जोखिम में डाल कर चुकाती है. मदर्स डे पर पेश है जूही स्मिता की खास रिपोर्ट.
मदरहुड की जर्नी को हर औरत तय करना चाहती है. वो कहते हैं न! भगवान का दूसरा रूप ‘मां’ होती हैं. मां शब्द में ही कई तरह की भावनाएं छीपी हुई हैं. जैसे ही एक मां के गर्भ में बच्चे का आगमन होता है, वह ममता से भर जाती हैं. शुरुआत के महीने से लेकर डिलीवरी होने तक के सफर और बच्चा होने बाद का सफर काफी चुनौतियों और भावनात्मक भरा होता है. इस जर्नी को तय करने वाली वर्किंग और नॉन वर्किंग मदर्स दोनों ही शामिल हैं. दोनों के ही अपनी संघर्ष और चुनौतियों की कहानी है. इस मदर्स डे पर हम उन मांओं की कहानी लेकर आये हैं, जो पहली बार मां बनने वाली या पहली बार मां बनीं है और ऐसी भी मां हैं, जिन्होंने विकट परिस्थिति में अपने बच्चे की जान बचाने के लिए किडनी व ब्लड तक दान कर दी.
बड़ी पहाड़ी की रहने वाली शांभवनी अभी गर्भवती है. ये उनका आठवां महीना चल रहा है. वे कहती हैं हर मां दुनिया की सबसे अच्छी मा होती हैं. क्योंकि उसने एक दूसरे मनुष्य को जन्म दिया है. एक मां के तौर पर मुझे लगता था कि मेरे पास वह खास पल नहीं है, लेकिन धीरे-धीरे मुझे मातृत्व का आनंद आने लगा. जब गर्भावस्था के बारे में पता चला तो घर में खुशी का माहौल था. जब पहली बार बेबी ने मूवमेंट किया, तो मैं बहुत ज्यादा डर गयी. बाद में मुझे इसके बारे में बताया गया. मैं अभी डिस्टेंस मोड में जीएनएम की पढ़ाई कर रही हूं और मार्च के महीने में मैंने पहले साल की परीक्षा दी. ग्वालियर में सेंटर था. छह महीने के गर्भावस्था में मैंने परीक्षा दी इसमें सासु मां और पति का भरपूर सहयोग मिला.
गर्दनीबाग की रहने वाली सुरभि गर्भवती हैं. अभी इनका नौंवा महीना चल रहा है. वे कहती हैं, गर्भावस्था के दौरान मुझे काम करते रहने के लिये जो ऊर्जा और प्रोत्साहन चाहिये था, वह मुझे मेरे गर्भस्थ शिशु से मिलाता है. मैं पेशे से एक बैंकर हूं. प्रेग्नेंसी के तीन-चार महीने तक मैंने ऑफिस किया, लेकिन कोरोना की वजह से ऑफिशियली वर्क फ्रॉम होम करने लगी. छह महीने के बाद डॉक्टर की सलाह पर मैंने मैटरनिटी लीव ले लिया. घर का पहला बेबी आने वाला है, तो काफी खुशी है. बेबी से ऐसी बॉन्डिंग हो गयी हैं कि कब पंच और हिचकी लेता है, उसकी हर हरकतों का एहसास होता है. उसके आने का इंतजार बेसब्री से कर रही हूं.
इसी माह दो मई को चिड़ैयाटांड़ की रहने वाली पुजा कुमारी ने अपनी बेटी को जन्म दिया है. उन्होंने प्रेगनेंसी के दौरान कई तरह की चुनौतियों का सामना किया. वे कहती हैं मदरहुड का सफर मेरे लिए आसान नहीं था. कई रातों को नींद नहीं आती थी, लेकिन बच्चे के एहसास ने मुझे हर वक्त सकारात्मक रखा. सिजेरियन से बेबी हुई है, लेकिन जब पहली बार बेबी को हाथ में लिया तो मेरी आंखे भर आयीं. शब्दों में इसे बयां नहीं किया जा सकता है. अभी अपने मायके हूं, तो मेरी मां मुझे बेबी का कैसे ध्यान से रखना है, इसे लेकर हमेशा समझाती है. जितनी बार बेटी को देखती हूं, भगवान का शुक्रिया अदा करती हूं. मेरी ताकत का सबसे बड़ा स्रोत मेरी बेटी है. मेरा मानना है कि उसकी मौजूदगी से मेरी जिंदगी और ज्यादा प्यारी और सार्थक हो गयी है.
मिनी मिश्रा की बेटी प्रियंका थैलेसीमिया से पीड़ित है. ऐसे में हर तीन से छह महीने में प्रियंका को खून देना होता है. हर बार कोई न कोई डोनर मिल जाता था, लेकिन इस बार कोई मिला नहीं. फिर मैंने अपना ब्लड टेस्ट करवाया. ब्लड मैच होते ही दे मैंने अपनी बेटी को ब्लड दिया. अब वो ठीक है. अगली बार जब भी उसे जरूरत होगी मैं अपना ब्लड दूंगी. मां होने के नाते उनकी बेहतरी के लिए मैं कूछ भी कर सकती हूं.
पाटलिपुत्र कॉलोनी की रहने वाली नेहा निधि के लिए उसकी मां इंदू भगवान से कम नहीं हैं. उन्हें जब किडनी की दिक्कत आयी तो कई महीनों तक वे डायलिसिस पर रही.उस वक्त खाना-पीना और समय पर दवा देने की ड्यूटी मम्मी ने ही ली थी. डोनर नहीं मिलने की वजह से एक समय ऐसा लगा कि अब मैं कुछ दिनों की मेहमान हूं, लेकिन मम्मी ने हार नहीं मानी. बीतते समय के साथ उन्होंने अपने स्वास्थ्य की परवाह किया बिना मुझे किडनी देने की ठानी. काफी खतरा होने के बाद भी उन्होंने मेरे लिए ये सब कियर. अभी मैं और मम्मी बिल्कुल स्वस्थ है.
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