मुख्य संवाददाता, मुजफ्फरपुर भूमि अधिग्रहण से संबंधित एक महत्वपूर्ण बदलाव आया है. अब चकबंदी खतियान, जमाबंदी और वास्तविक दखल कब्जा में विसंगति होने पर भुगतान के लिए वास्तविक दखल कब्जा को ही निर्णायक माना जाएगा. राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार सिंह ने इस संबंध में सभी जिलाधिकारियों को निर्देश जारी किए हैं.नए निर्देश के अनुसार, यदि अर्जित किए जा रहे खेत या उसके अंश पर किसी रैयत का वास्तविक रूप से कब्जा है, तो उसे ही हितबद्ध रैयत मानते हुए भुगतान की कार्रवाई की जाएगी. हालांकि, यह तभी लागू होगा जब संबंधित व्यक्ति उस खेसरे का अतिक्रमणकारी न हो और उस खेसरे पर उसका स्वामित्व चकबंदी से पहले के सीएस/आरएस खतियान या उसके आधार पर हुए लेनदेन के आधार पर हो.इन सभी मामलों में, जिला भू-अर्जन पदाधिकारी को एक आत्मभारित आदेश (self-contained order) पारित करना होगा, जिसमें यह स्पष्ट किया जाएगा कि चकबंदी खतियान या जमाबंदी के आधार पर स्थिति भिन्न होने के बावजूद जिस रैयत का दखल कब्जा है, उसे हितबद्ध रैयत क्यों माना जा रहा है और भुगतान क्यों किया जा रहा है. विभाग ने इस संबंध में विधिक परामर्श भी प्राप्त कर लिया है. पत्र में बताया गया है कि चकबंदी अधिनियम 1956 की धारा 16 के अनुसार, चकबंदी चल रहे गांवों में धारा 13 के तहत चकबंदी योजना को अंतिम रूप देने और धारा 15 के तहत अंतरण प्रमाण पत्र देने के बाद धारा 13 के तहत संपुष्ट चकबंदी योजना को अंतिम खतियान माना जाता है, जो अद्यतन अधिकार अभिलेख में परिवर्तित हो जाता है. लेकिन, कई मामलों में यह देखा गया है कि चकबंदी खतियान अंतिम रूप से संपुष्ट होने के बाद भी पंजी दो की जमाबंदी सीएस/आरएस खतियान के अनुसार ही चल रही है. राज्य के 5657 गांवों में जहां चकबंदी की कार्रवाई शुरू की गई है, वहां अधिकांश मामलों में यह विसंगति पाई गई है. इस समस्या के दीर्घकालिक समाधान के लिए संबंधित अधिनियम में संशोधन की कार्रवाई प्रक्रियाधीन है. अपर मुख्य सचिव ने बताया कि इस विसंगति के कारण रैयतों का भुगतान रोके जाने से विभिन्न परियोजनाओं की प्रगति में बाधा उत्पन्न हो रही थी. इसी को ध्यान में रखते हुए विभाग ने ऐसे मामलों में भुगतान की कार्रवाई को लेकर यह महत्वपूर्ण निर्देश जारी किया है, ताकि विकास परियोजनाओं में अनावश्यक देरी न हो.
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