Bihar News: ओलंपिक में छह मिनट भी नहीं लड़ पाते पहलवान, बिहार में 13 दिन तक चली एक कुश्ती

Bihar News: आप यह जानकर चौंक उठेंगे हॉकी के बाद देश को सबसे अधिक मेडल देने वाली 'कुश्ती' की सबसे लंबी प्रतियोगिता बिहार में हुई थी.

By Anuj Kumar Sharma | September 1, 2024 10:41 PM
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Bihar News: मुजफ्फरपुर. आपके जेहन में पेरिस ओलंपिक की याद अभी मिटी नहीं होगी. विनेश फोगाट भले ही मेडल से चूक गईं लेकिन पूरी दुनिया में भारतीय पहलवान और उनकी कुश्ती का डंका बज रहा है. आप यह जानकर चौंक उठेंगे हॉकी के बाद देश को सबसे अधिक मेडल देने वाली ‘कुश्ती’ की सबसे लंबी प्रतियोगिता बिहार में हुई थी. आधुनिक ओलंपिक खेलों में कुश्ती मात्र छह मिनट में खत्म हो जाती है. स्टॉकहोम में 1912 के ओलंपिक में एस्टोनिया के मार्टिन क्लेन और फिनलैंड के अल्फ्रेड असिकैनेन के बीच 11 घंटे 40 मिनट तक लड़ा गया था. ओलंपिक इतिहास का सबसे लंबा कुश्ती मैच है. अब आप यह जानकार चौंक जाएंगे कि नालंदा के राजगीर में हजारों साल पहले राजा जरासंध और भीम के बीच मल्ल-युद्ध यानि कुश्ती 13 दिन तक चली थी. इस जगह को आज जरासंध का अखाड़ा नाम से जाना जाता है. मल्ल-युद्ध की चार शैलियां मानी जाती हैं. अंगों और जोड़ों को तोड़ने पर ध्यान केंद्रित करने वाली शैली जरासंधी और विशुद्ध ताकत पर ध्यान केंद्रित करने वाली शैली भीमसेनी नाम मिला.

धार्मिक ग्रंथों के अध्येता

धार्मिक ग्रंथों के अध्येता, विचारक एवं लेखक डीएन गौतम ( रिटायर्ड डीजीपी ) बताते हैं कि पौराणिक कथाओं से लेकर उपनिषदों तक में खेल का महत्व बताया गया है. राम मर्यादा पुरुषोत्तम थे इस कारण वह मर्यादा के भीतर हैं, बाकी देवी – देवताओं के खेल प्रेमी होने के बहुत प्रमाण है. पौराणिक ग्रंथ और उपनिषदों में खेलों का विस्तार से वर्णन है. कई खेलों का नाम हिंदू देवताओं के नाम पर रखा गया है. सनातन धर्म कॉलेज, अंबाला कैंट हरियाणा के सहायक प्रोफेसर राजेश कुमार अपने शोध ” प्राचीन भारत में शारीरिक गतिविधियों और खेलों का ऐतिहासिक विश्लेषण” में यह जानकारी देते हैं कि रामायण में शारीरिक प्रशिक्षण और मनोरंजन का बहुत उल्लेख है. इस काल से संबंधित तीन महान स्थान अयोध्या, किष्किंधा और लंका कई खेलों के केंद्र थे. रथ-सवारी और घुड़सवारी लोकप्रिय थे. उनके शोध से पता चलता है कि रावण के पास अशोक वाटिका में स्विमिंग पूल था जहां तैराकी होती थी. मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर मंदिर में बाकायदा गर्भगृह में भगवान शिव और पार्वती के लिए चौसर पासे की बिसात बिछाई जाती है.

ब्रज में राधा- कृष्ण के पतंग, चौगान और पासा- चौपड़ खेलने का वर्णन

ब्रज शोध संस्कृति वृंदावन के प्रकाशन अधिकारी गोपाल शरण शर्मा बताते हैं कि महाभारत काल में जिम्नास्टिक का विशेष उल्लेख मिलता है. कूदना, हाथ मिलाना, कुश्ती, गेंदों से खेलना, लुका-छिपी, जानवरों का पीछा करना इस काल में प्रचलित खेल थे. ऐसा कहा जाता है कि भगवान कृष्ण यमुना के तट पर गोपियों के साथ गेंद का खेल खेलते थे. “इति-दंड” या “गुल्लीदंड” भी खेले जाने वाले खेलों में से एक था और इसमें एक लंबी और एक छोटी छड़ी का इस्तेमाल होता है. भीम इसमें पारंगत थे और यह आज के क्रिकेट के समान है. नेशनल म्यूजियम, नई दिल्ली में लघु चित्र शैली में बनी एक पेंटिंग है जिसमें भगवान श्रीकृष्ण और राधा ‘चतुरंग’ खेल रहे हैं. माना जाता है कि आज का शतरंज इसी चतुरंग से विकसित हुआ था. ‘दशम स्कंध, ब्रज भाषा एवं वाणी साहित्य में पतंग, चौगान और पासा- चौपड़ खेलने का भी वर्णन मिलता है. श्रीमद्भागवत में भी कृष्ण और बलराम के विविध खेलों को लेकर अष्टछाप के कवियों ने वर्णन किया है. आंख मिचौली, रस्साकशी भी इसमें शामिल है.’ गोपाल शरण शर्मा कहते हैं.

बातचीत के प्रमुख अंश

पौराणिक काल में महिलाएं भी खेल और आत्मरक्षा की कला में भी उत्कृष्ट थीं. मल्लयुद्ध (कुश्ती) शब्द का पहला लिखित प्रमाण रामायण में मिलता है, जो वानर राजा बलि और लंका के राजा रावण के बीच कुश्ती के संदर्भ में मिलता है. हनुमान को पहलवानों के संरक्षक के रूप में पूजा जाता है. कुश्ती के मैचों के अन्य प्रारंभिक साहित्यिक विवरणों में बलराम और कृष्ण की कहानी शामिल है. पौराणिक और उपनिषदों में नायकों के साधारण से असाधारण प्राणियों में बदलने के विविध अर्थों, कारणों और व्याख्याओं को विस्तार से दर्शाया गया है. इस समृद्ध खेल विरासत से बिहार के युवा प्रेरणात्मक सबक ले सकते हैं. भगवान शिव, कृष्ण आदि का चरित्र बेहतर रोल मॉडल बनाने के लिए प्रेरित करता है.
डीएन गौतम, पूर्व डीजीपी

खेल दुनिया भर में हर पौराणिक कहानी में प्रमुख संस्कृति का एक अनिवार्य घटक रहे है. भारतीय प्राचीन कथा- कहानियां हैं जो बताती हैं कि हमारे नायकों ने एथलेटिक, तीरंदाजी, कुश्ती, रथ दौड़, तैराकी और शिकार जैसे खेलों में महारत हासिल की है. ऐसे प्रमाण हैं कि बिहार में बौद्ध धर्म के फलने-फूलने के साथ ही भारतीय खेल उत्कृष्टता के शिखर पर पहुंच गए. विला मणि मंजरी में तिरुवेदाचार्य ने इनमें से कई खेलों का विस्तार से वर्णन किया है.
डॉ राजीव झा, निदेशक, यूजीसी, एचआरडीसी, बीआरए बिहार विश्वविद्यालय

बिहार में कुश्ती की महान परंपरा रही है. जरासंध का अखाड़ा इसका साक्षात प्रमाण है. वाण गंगा क्षेत्र एरिया में रथ चक्र के निशान मिले हैं. खुदाई में कई ऐसे प्रमाण मिले हैं जो यह दर्शाता है कि बिहार के लोग खेलों को बहुत ही महत्व देते थे. इस दिशा में शोध करने की भी जरूरत है ताकि खेलों की विरासत को सामने लाया जा सके.
केके मोहम्मद, विख्यात पुरातत्विद

राधा कृष्ण के खेल प्रेम पर गाए जाने वाले पद

सुंदर पतंग बांधि मनमोहन नाचत है मोरन के ताल॥
कोऊ पकरत कोऊ ऊंचल कोऊ देखत नैन बिसाल।
कोऊ नाचत कोऊ करत कुलाहल कोऊ बजावत खरौकर ताल॥
कोऊ गुड़ी ते उरझावत आपुन सेचत डोर रसाल।
परमानंददास स्वामी मनमोहन रीझि रहत एकही काल॥

सुंदर सिला खेल की ठौर।

मदन गोपाल जहां मध्य नाइक चहुं दिसि सखा मंडली और॥
बांटत छाक गोवर्धन ऊपर बैठत नाना बहु विधि चौर।
हंसि हंसि भोजन करत परस्पर चाखि लै मांग कौर॥
कबहूँ बोलत गांइ सिखर’ चढ़ि लै-लै नाम घूमरी घौर।
चतुर्भुज प्रभुलीला रस रीझत गिरिधरलाल रसिक सिरमौर॥

गोपाल माई खेलत हैं चौगान।

ब्रजकुमार बालक संग लीने वृंदावन मैदान॥
चंचल बाजि नचावत आवत होड़ लगावत यान।
सबही हस्त लै गेंद चलावत करत बाबा की आन॥
करत न संक निसंक महाबल हरत नयन को मान।
परमानंददास को ठाकुर गुर आनंद निधान

“पासा खेलत हैं पिय प्यारी।
भूषण सब लगाए ‘श्रीविठ्ठलप्रभु” हारे कुंजबिहारी।।”
…..हटरी में बैठ ठाकुर जी खेलते हैं चौपड़

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