प्रतिनिधि, बोचहां अहियापुर थाना क्षेत्र के अभिज्ञान स्कूल प्रांगण में भागवत कथा के पहले दिन सोमवार को आचार्यश्री वेदानंद शास्त्री आनंद ने कहा कि मानव जीवन प्राप्त जीव को सबसे पहले अपने आपको नियमित जीवनचर्या को निभाना चाहिए. तभी आपको अपने अभीष्ट की प्राप्ति हो सकती है. आप चाहे भौतिक जीवनशैली को प्रश्रय दें, या भगवान का आश्रय ले़ं क्योंकि प्रत्येक मानव के सिर पर तीन प्रकार के ताप यथा दैविक, दैहिक और भौतिक रहता है. अतः सदैव अपने आपको संयमित जीवन जीना चाहिए. विदुर जी के अनन्य प्रेम के वशीभूत श्री भगवान ने केले के छिलके और सूखे साग को स्वीकार किया. कलियुग में सत्कर्म भागवत कथा का श्रवण चिंतन और मनन करने को कहा गया है. भक्त के वश में भगवान है़ इसका प्रत्यक्ष प्रमाण विदुरजी पर कृपा से है. जीव के कल्याण का मार्ग क्या है. किस प्रयत्न से मानव के दुखों में कमी आ सकती है. हरेक जीव की यही आंतरिक इच्छा रहती है कि उनके जीवन में किसी प्रकार के दुःख और समस्या न आये. उन्होंने कहा कि हमें सदैव सात्विक भोजन और सत्य वचन का पालन एवं अनुसरण करना चाहिए. जैसा हमारा चित्त रहेगा, वैसी हमारी चित्तवृत्ति होगी. भगवत प्राप्ति का लक्ष्य है क्या? इसका सीधा सा मतलब हमारे हृदय की शुद्धता है. अहंकारपूर्ण जीवन में उद्विग्नता रहती है और उद्विग्न मन सच्चे कार्य और अध्यात्म का चिंतन नहीं हो पाता है. जिसने भी सच्चे मन से प्रभु को पुकारा है, उनपर प्रभु की कृपा प्राप्त हुई है. भगवन श्रीकृष्ण ने दुर्योधन द्वारा अर्पित छप्पन भोग का त्याग करते हुए श्री विदुर जी के घर भोजन स्वीकार किया. विदुरजी का निर्मल प्रेम ही प्रभु को विवश किया. संसार को आपका सिर्फ तन और धन चाहिए. आपका मन लेकर वो क्या करेंगे. उन्होंने कहा कि इस संसार में जुटाये गये सभी वस्तुएं यहीं छोड़कर जाना पड़ेगा. जब यह शरीर ही नश्वर है तो इस धन का क्या महत्त्व. उन्होंने कहा कि प्रतिदिन चंदन और वंदन करना चाहिए. हमें अपना आसन, श्वास, संग और अपने इंद्रिय को जीतना चाहिए. इसका तत्काल प्रभाव आपकी क्रियाशीलता पर पड़ेगी. आपका कर्म शुद्ध हो जाये तो आपको परम गति प्राप्त हो जायेगी.
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