पटना : स्टडी में खुलासा, बोतल वाला दूध बच्चों को दे रहा डायरिया, पेट व फेफड़े का संक्रमण
पटना : पटना एम्स के पूर्व शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ विनय कुमार ने बताया कि रबर के निप्पल से दूध पीने वाले बच्चों के फेफड़े कमजोर हो सकते हैं. जिसकी वजह से उन्हें सांस संबंधित समस्याएं भी प्रभावित कर सकती हैं.
By Prashant Tiwari | March 28, 2025 7:15 AM
पटना, आनंद तिवारी : यदि आप अपने बच्चे को डिब्बा बंद दूध को बॉटल से पिला रहे हैं तो सावधान हो जाएं. इससे बच्चों को कई तरह की बीमारियां घेर सकती हैं. पेट, फेफड़े और यूरिन का संक्रमण हो सकता है. यहां तक कि अगर मां का दूध नहीं पिलाया तो बच्चा कुपोषण तक का शिकार हो सकता है. अगर किसी कारण वस दूध बाहरी दूध पिलाना मजबूरी बन गया तो सिर्फ गाय का ही दूध दें व फिर कटोरी के माध्यम से पिलाएं. यह तथ्य इंडियन एकेडमिक ऑफ पेडियाट्रिक बिहार चैप्टर की ओर से शहर के पीएमसीएच, आइजीआइएमएस, एनएमसीएच व पटना एम्स के के बाल रोग विभाग में आ रहे मरीजों की स्टडी रिपोर्ट के आधार सामने आया है. बीते पांच महीने में संबंधित अस्पतालों के करीब 250 बच्चें डायरिया, उलटी, फेफड़े, पेट दर्द व यूरिन संक्रमण आदि से पीड़ित होकर इलाज के लिए ओपीडी में पहुंचे, इन बच्चों के परिजनों से बातचीत कर स्टडी की गई तो मामला सामने आया.
बॉटल से दूध से तीन बार बीमार पड़े बच्चे
डॉक्टरों ने पाया कि बॉटल से दूध पीने वाले दो वर्ष तक के करीब 70 प्रतिशत बच्चे तीन बार तक बीमार पड़े. इनमें उलटी-डायरिया और पेट की बीमारियां शामिल हैं. जबकि करीब 30 प्रतिशत बच्चों को यूरिन संक्रमण हुआ. इनमें करीब पांच प्रतिशत ऐसे भी बच्चे थे जिनको भर्ती कर इलाज मुहैया कराना पड़ा. वहीं डॉक्टरों की माने तो बोतल साफ न होने के कारण भी संक्रमण पेट में पहुंच जाता है. खासकर गर्मी में तो पेट के रोग और बढ़ने लगते हैं. वायरल और बैक्टीरियल दोनों तरह के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है.
कमजोर हो सकते हैं फेफड़े
पटना एम्स के पूर्व शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ विनय कुमार ने बताया कि रबर के निप्पल से दूध पीने वाले बच्चों के फेफड़े कमजोर हो सकते हैं. जिसकी वजह से उन्हें सांस संबंधित समस्याएं भी प्रभावित कर सकती हैं. प्लास्टिक की बॉटल की सप्लाई कठिन होती है. नतीजतन बैक्टीरिया आसानी से पनप आते हैं. जो बच्चे के शरीर में दाखिल होकर संक्रमण पैदा करते हैं. बच्चों को बॉटल के बजाए कटोरी व चम्मच से दूध पिलाएं.
घटने लगती है रोग प्रतिरोधक क्षमता
इंडियन एकेडमिक ऑफ पेडियाट्रिक बिहार चैप्टर के पूर्व सचिव डॉ एनके अग्रवाल ने बताया कि कुर्जी अस्पताल में डिब्बा बंद बोतल का दूध तुरंत बंद कर मां का दूध पीने के लिए अपील की गई, जिसके बाद अब कुर्जी में सिर्फ स्तनपान के लिए ही डॉक्टर लिखते हैं. उन्होंने बताया कि स्टडी में पाया गया है कि अभी भी सिर्फ 50 प्रतिशत ही मां बच्चे को स्तनपान करा रही हैं. जिसको लेकर बिहार चैप्टर की ओर से जागरूकता अभियान चलाया गया. डॉ अग्रवाल ने कहा कि बच्चों को छह माह तक सिर्फ स्तनपान कराएं. दो साल तक मां का दूध व अनाज खिलाएं. डिब्बा वाला दूध बोतल से पीने से बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास धीमा हो जाता है.
यह करें
– बच्चे को जितनी बार दूध पिलाएं, खौलते पानी में बोतल उबालें.
– बोतल की निपल निकालकर ढंग से साफ कर लें.
– बोतल में उतना ही दूध डालें जितना बच्चा पी ले.
– एक बार का बचा दूध दुबारा बच्चे को मत पिलाएं.
– बच्चे को जुकाम-बुखार हो तो पंखा-कूलर बंद न करें.
– पंखा-कूलर बंद करने से बच्चो को हाइपरथर्मिया हो सकता है.