
संवाददाता,पटना जीविका बिहार में महिला सशक्तीकरण की मिसाल बन चुकी है. जीविका परियोजना से जुड़कर आज लाखों ग्रामीण महिलाएं गरीबी के दुष्चक्र से बाहर निकाल रही हैं. बिहार में सर्वाधिक कृषि से जुड़े स्वरोजगार से 35 लाख 89 हजार जीविका दीदियां आत्मनिर्भर बन चुकी हैं. कृषि विभाग से समन्वय कर अबतक 515 कस्टम हायरिंग केंद्र संचालित किये जा रहे हैं. कृषि क्षेत्र में पांच हजार 178 कृषि उद्यम की स्थापना की गयी है. वहीं, पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग के सहयोग से समेकित मुर्गी विकास के अलावा समेकित बकरी एवं भेड़ विकास योजना के तहत 8.09 लाख परिवारों को मुर्गीपालन एवं बकरीपालन से जोड़ा गया है. 1.42 लाख परिवार दुग्ध उत्पादन से जुड़े हैं. करीब एक हजार जीविका दीदियां मत्स्यपालन से जुड़ी हैं. अब तक 5,987 पशु सखियों को प्रशिक्षित किया गया है, जो बकरीपालन करने वाली 5.97 लाख परिवारों को सेवा प्रदान कर रही हैं. अररिया में सीमांचल बकरी उत्पादक कंपनी स्थापित की गयी है. इससे अब तक 19 हजार 956 परिवारों को जोड़ा गया है. राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की सहायता से कोसी प्रमंडल में स्थापित कौशिकी दुग्ध उत्पादक कंपनी के अंतर्गत अबतक 829 दुग्ध संग्रहण केंद्र खोले गये हैं. अब तक 26,280 पशुपालक दूध की बिक्री इन दुग्ध संग्रहण केंद्रों में कर रहे हैं एवं प्रतिदिन औसतन 70 हजार लीटर दूध का संग्रहण इन केंद्रों के माध्यम से किया जा रहा है. मधुमक्खी पालन कार्य के लिए अबतक 490 उत्पादक समूहों का गठन किया गया है. आइआइएम कोलकाता के सहयोग से महिला उद्यमिता के क्षेत्र में अबतक 150 दीदियों का उद्यम विकास किया गया है. खोले गये 10.36 लाख स्वयं सहायता समूहों के बचत खाते : 2006 से अब तक 10.63 लाख स्वयं सहायता समूहों का गठन हुआ है. इससे एक करोड़ 35 लाख से अधिक परिवारों को जोड़ा गया है. अब तक जीविका दीदियों के 10.36 लाख स्वयं सहायता समूहों के बचत खाते खोले गये हैं. विभिन्न बैंकों द्वारा 48 हजार 516 करोड़ रुपये की राशि ऋण के रूप में स्वयं सहायता समूहों को उपलब्ध करायी गयी है.
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