Bihar Child Labour Rescue: बाल मजदूरी और बाल तस्करी के खिलाफ जारी राष्ट्रीय स्तर के अभियानों में बिहार ने वर्ष 2024-25 में अहम भूमिका निभाई है. इस दौरान राज्य में 3,974 बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त कराया गया है, जिससे बिहार इस अभियान में देशभर में दूसरा स्थान हासिल करने में सफल रहा है. यह जानकारी ‘जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (JRC)’ की हालिया रिपोर्ट में सामने आई है.
तेलंगाना सबसे आगे, बिहार दूसरे स्थान पर
रिपोर्ट के मुताबिक, JRC के सहयोगी संगठनों ने कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ मिलकर देशभर के 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 38,388 छापेमारी अभियान चलाए. इस दौरान कुल 53,651 बच्चों को बाल श्रम से मुक्ति दिलाई गई. इनमें सबसे अधिक 11,063 बच्चे तेलंगाना से छुड़ाए गए, जबकि बिहार का आंकड़ा 3,974 रहा, जो दूसरे स्थान पर है.
90% बच्चे खतरनाक और अमानवीय हालात में काम कर रहे थे
छुड़ाए गए बच्चों में लगभग 90 प्रतिशत ऐसे थे जो अत्यधिक जोखिमभरे और अमानवीय कार्यस्थलों पर काम कर रहे थे. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और भारत सरकार ऐसे कार्यस्थलों को ‘worst forms of child labour’ की श्रेणी में रखती है. इनमें शामिल हैं कारखानों में लंबी शिफ्टें, ईंट-भट्ठों पर मजदूरी, घरेलू नौकर का काम, होटल-ढाबों में किचन का कार्य और असंगठित फैक्ट्रियों में हानिकारक रसायनों के संपर्क में आना.
JRC ने जताई चिंता, अब जरूरत है पुनर्वास और निगरानी की
जेआरसी ने रिपोर्ट में यह भी चिंता जताई है कि केवल बच्चों को मुक्त कराना ही काफी नहीं है, बल्कि उन्हें शिक्षा, पोषण, स्वास्थ्य और पुनर्वास से जोड़ना सबसे जरूरी चुनौती है. रिपोर्ट में यह सिफारिश की गई है कि राज्य सरकारों को ऐसे बच्चों की निगरानी के लिए ठोस व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि वे दोबारा किसी तस्करी या श्रम जाल में न फंसें.
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बिहार में बच्चों को बाल श्रम से बचाने में तेजी आई
बीते कुछ वर्षों में बिहार में बाल श्रम के खिलाफ चलाए जा रहे अभियानों में सक्रियता और सख्ती आई है. सरकार के श्रम विभाग, बाल संरक्षण इकाइयों और सामाजिक संगठनों की संयुक्त कार्रवाई ने कई जिलों में बाल तस्करी के रैकेट को ध्वस्त किया है. हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि अब असली परीक्षा इन बच्चों को सामान्य जीवन में वापस लाने की है, जो उनके भविष्य को सुरक्षित बना सके.