Bihar Museum की दुर्लभ पुस्तकों का होगा डिजिटलीकरण, मौजूद है 100-150 साल पुरानी किताबें

Bihar Museum: बिहार म्यूजियम के अपर निदेशक अशोक कुमार सिन्हा ने बताया कि पुस्तकों को सुरक्षित रखने के लिए इसे डिजिटलीकरण किया जायेगा. उन्होंने बताया कि अब मेम्बरशिप लेने वाले लोगों से एंट्री फी नहीं लिया जायेगा.

By Paritosh Shahi | January 10, 2025 2:32 PM
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Bihar Museum: (हिमांशु देव), बिहार की राजधानी पटना के बेली रोड स्थित बिहार म्यूजियम जितना खास है, उतना ही वर्ल्ड क्लास यहां की लाइब्रेरी है. इस म्यूजियम में पुस्तकों का विशाल भंडार है. जिसमें नये एडिशन के कला, साहित्य, शोध से संबंधित पुस्तकें तो हैं ही, यहां करीब 4000 से अधिक दुर्लभ किताबें भी हैं, जो करीब 100-150 वर्ष पुरानी है. इसके अलावा यहां चित्रमय राम कथा, मत्स्य पुराण और विभिन्न धार्मिक मान्यताओं से संबंधित पुस्तकें भी हैं. सिक्का के इतिहास से लेकर बिहार के कला शिल्प का इतिहास और पौराणिक शासन व्यवस्था से संबंधित भी कई दुर्लभ किताबें हैं. इसके अलावा देश-दुनिया के कला संस्कृति और शिल्प से जुड़ी इतिहास को समझने के लिए वर्षों पुरानी पुस्तकें भी मौजूद हैं, जो अब कहीं भी नहीं मिलती.

खुदा बख्श लाइब्रेरी की तरह यहां की पुस्तकों को भी संजोया जायेगा

संग्रहालय के अपर निदेशक अशोक कुमार सिन्हा ने बताया कि यहां धर्म संस्कृति के विकास और भाषा के विकास के साथ-साथ कई ऐसी पुस्तक हैं, जिसे पढ़कर बिहार को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है. अब इन पुस्तकों को सुरक्षित रखने के लिए इसे डिजिटलीकरण किया जायेगा, ताकि इन सभी पुस्तकों का कंटेंट ऑनलाइन उपलब्ध हो सकें. अभी इसके लिए वेबसाइट डेवलप किया जा रहा है. उम्मीद है कि मार्च तक इसे पूरा कर लिया जायेगा. जिसके बाद पुस्तकों के डिजिटलीकरण का काम शुरू होगा.

लाइब्रेरी के प्रति बढ़ रही पाठकों की रुचि

सहायक पुस्तकालय अध्यक्ष पशुपति कुमार ने कहा कि लाइब्रेरी के प्रति पाठकों की लगातार रुचि बढ़ रही है. हाल ही में दो लोगों ने वार्षिक व 11 लोगों ने अर्द्ध वार्षिक सदस्यता ली है. अभी तक कुल 165 लोगों ने सदस्यता ली है. यहां पर अलग-अलग वर्ग के पाठक अध्ययन के लिए आते हैं. रिसर्च के सिलसिले में काफी संख्या में इंटरनेशनल रिसर्चर बिहार म्यूजियम में पहुंचते हैं. उन्होंने बताया कि अब सदस्यता लेने वाले लोगों से म्यूजियम के लिए प्रवेश शुल्क भी नहीं लिया जा रहा है.

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खुदा बख्श लाइब्रेरी : डिजिटली संरक्षित हुईं 4348 पांडुलिपियां

अशोक राजपथ स्थित खुदा बख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी ने अपनी 4348 दुर्लभ पांडुलिपियों को डिजिटल रूप में संजो लिया है. इन पांडुलिपियों में कुल 8.5 लाख पन्ने शामिल हैं. इसकी आधिकारिक वेबसाइट पर पांडुलिपियों के 44 वॉल्यूम का कैटलॉग भी उपलब्ध है, ताकि पाठक आसानी से पढ़ सकें. हालांकि, पाठक लाइब्रेरी जाकर ही इन पांडुलिपियों का अध्ययन कर सकते हैं. लाइब्रेरी में 31 लाख से अधिक पुस्तकें और 21,136 पांडुलिपियां हैं, जो विभिन्न भाषाओं हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, पर्शियन, अरबी और ब्रेल में संग्रह की गयी हैं. वहीं, रीडिंग हॉल में हर दिन 70 से 80 छात्र शोध और प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए आते हैं. लाइब्रेरी में 11 घंटे तक नि:शुल्क अध्ययन की सुविधा है.

700 दुर्लभ पुस्तकों का हुआ है प्रकाशन

लाइब्रेरी त्रैमासिक पत्रिका भी प्रकाशित करती है, जिसे अब तक 215 अंक निकल चुके हैं. साथ ही, लाइब्रेरी ने 700 पुस्तकों का भी प्रकाशन किया है, जिनमें औरंगजेब : एक नयी दृष्टि, तारीखें! फिरोजशाही, तैमूर नामा, दीवान-ए-हाफिज, सिरात-ए-फिरोजशाही, स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार का योगदान आदि पुस्तकें मुख्य हैं. खुदा बख्श आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अमूल्य धरोहर साबित होगा और इसके संरक्षण का कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण है.

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