लाइफ रिपोर्टर@पटना
Bihar Museum बिहार म्यूजियम में जहां एक ओर ऐतिहासिक गैलरियों के माध्यम से समृद्ध अतीत को जीवंत किया गया है, वहीं इसकी लाइब्रेरी भी कम आकर्षण नहीं है. यह लाइब्रेरी अपने आप में एक बेजोड़ शैक्षणिक और शोध केंद्र बन चुकी है. यहां संग्रहित चार हजार से अधिक दुर्लभ पुस्तकें हैं, जो करीब डेढ़ सौ वर्ष पुरानी हैं.
ये सभी पुस्तकें बिहार के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और कलात्मक पक्षों से रूबरू कराती हैं. लाइब्रेरी में सिक्कों के इतिहास, कला शिल्प, पुरातत्व, सामाजिक संरचना और साहित्य से संबंधित कई ऐसी किताबें मौजूद हैं, जो किसी दूसरे जगह मिलना असंभव है. संग्रहालय के अपर निदेशक अशोक कुमार सिन्हा ने बताया कि इन पुस्तकों के माध्यम से कोई भी बिहार को एक नये दृष्टिकोण से समझ सकता है.
जोर-शोर से हो रहा डिजिटलीकरण का कार्य
लाइब्रेरी में मौजूद इन दुर्लभ पुस्तकों का डिजिटलीकरण कार्य जारी है, जिसे बिहार म्यूजियम बिनाले से पहले पूर्ण कर लिए जाने की योजना है. डिजिटल फॉर्मेट में ये पुस्तकें न केवल संरक्षित होंगी, बल्कि शोधकर्ताओं और पाठकों के लिए और अधिक सुलभ भी बनेंगी.
हर दिन 20 से अधिक आते हैं पाठक
बिहार म्यूजियम के सहायक पुस्तकालय अध्यक्ष पशुपति कुमार ने बताया कि लाइब्रेरी में प्रतिदिन 20 से अधिक पाठक अध्ययन के लिए आते हैं. पिछले एक वर्ष में लाइब्रेरी के प्रति रुचि में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. अब तक लगभग 200 से अधिक लोग इसकी सदस्यता ले चुके हैं. जिनमें शोधकर्ता, प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी करने वाले विद्यार्थी और विदेशों से आये अध्ययनकर्ता भी शामिल हैं.
लाइब्रेरी में सदस्यता शुल्क और सुविधा
लाइब्रेरी में प्रवेश हेतु सदस्यता अनिवार्य है, लेकिन एक बार सदस्यता लेने के बाद प्रवेश निःशुल्क हो जाता है. 2020 में लाइब्रेरी की स्थापना के समय यूजी और पीजी छात्रों के लिए वार्षिक शुल्क ₹200, शोधकर्ताओं के लिए ₹300 और सामान्य पाठकों के लिए ₹500 निर्धारित था. अब यह शुल्क छह माह और एक वर्ष की अवधि के आधार पर तय किया गया है, जिससे अधिक लोग जुड़ सकें.
2020 में हुई थी शुरुआत
बता दें कि बिहार म्यूजियम में लाइब्रेरी की स्थापना 2020 में हुई थी, और बहुत कम समय में ही यह शोध और अध्ययन का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गयी है. इसके विशेष संग्रह और सुविधाओं के कारण इसे राज्यभर के पुस्तक प्रेमियों और शोधकर्ताओं का सहयोग मिल रहा है.
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