अद्भुत वास्तुकला का प्रतीक है बिहार का यह राज परिसर, मंदिरों और महलों की नक्काशी देख लोग रह जाते हैं दंग

Bihar News: उत्तर बिहार की सांस्कृतिक राजधानी मधुबनी के राजनगर स्थित ऐतिहासिक राज परिसर आज भी मिथिला की भव्य कला, वास्तुकला और गौरवशाली इतिहास का प्रतीक है. दरभंगा राजवंश द्वारा निर्मित यह परिसर अपनी नक्काशी, मंदिरों और विदेशी शैली में बनी इमारतों के लिए प्रसिद्ध है. हालांकि 1934 के भूकंप के बाद उपेक्षा का शिकार होकर यह धरोहर अब खंडहर में बदलती जा रही है.

By Abhinandan Pandey | July 26, 2025 6:09 PM
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जयश्री आनंद/Bihar News: बिहार के मधुबनी जिले में स्थित राजनगर के राज परिसर का इतिहास, कला और भव्यता का संगम माना जाता है और यह आज भी बिहार के गौरवशाली इतिहास का प्रमाण स्थापित करता है. पर्यटकों को इस परिसर की बनावट में मिथिला एवं बंगाल की वास्तुकला की झलक साफ दिखती है. इसके साथ यहां के कुछ इमारतों में विदेशी शैली का भी असर दिखता है, जिससे यह जगह और खास बन जाती है. राजपरिसर की दीवारों पर की गई नक़्काशी और कलाकृति वाकई देखने लायक है.

रामेश्वर सिंह ने कराया था निर्माण

यहां 1870 मे दरभंगा राजवंश के समय बनी इमारतें और मंदिर आज भी लोगों के आकर्षण का कारण बनी हुई है. महाराजाधिराज रामेश्वर सिंह ने यहां देवी-देवताओं के कई भव्य मंदिर और भवन बनवाए थे. यहां के दीवारों पर की गई नक्काशी आज भी पुराने समय की शान और कला को दिखाती है.

भारत में पहली बार सीमेंट का हुआ था इस्तेमाल…

बताया जाता है कि इस भव्य महल को तैयार करने के लिए ब्रिटिश आर्किटेक्ट एमए कोरनी की सेवाएं ली गई थीं. यही नहीं, भारत में पहली बार सीमेंट का प्रयोग भी इसी भवन के निर्माण में हुआ था. करीब डेढ़ हजार एकड़ में फैले इस विशाल राज पैलेस का निर्माण वर्ष 1870 में शुरू हुआ था.

हाथी के पीठ पर बना महल

राजनगर की खास बात यह है कि एक महल को विशाल हाथी की मूर्ति के पीठ पर बनाया गया है, जो आज भी लोगों को चकित कर देता है. बता दें की मिथिला की कला और संस्कृति में मछली (माछ) और हाथी का विशेष स्थान रहा है. जहां मछली समृद्धि और शुभता का प्रतीक मानी जाती है, वहीं हाथी को भी शाही वैभव और सम्मान का संकेत माना जाता है. यही कारण है कि राजनगर स्थित ऐतिहासिक राज परिसर में इन दोनों प्रतीकों की झलक हर ओर दिखाई देती है.

राजनगर की दुर्दशा

साल 1934 में आए विनाशकारी भूकंप ने इस राजसी परिसर को गहरी चोट दी. जिसके बाद न तो इसकी मरम्मत की गई और न ही रख-रखाव पर ध्यान दिया गया. आज ऐसा हाल है कि शाही ठाट-बाट वाला यह परिसर धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील हो रहा है.

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