Home Badi Khabar कोर्ट के बाहर जाकर विवादों का निबटारा कराने वाले आर्बिट्रेटर को महंगी फीस दिये जाने पर पटना हाइकोर्ट ने दिया महत्वपूर्ण फैसला

कोर्ट के बाहर जाकर विवादों का निबटारा कराने वाले आर्बिट्रेटर को महंगी फीस दिये जाने पर पटना हाइकोर्ट ने दिया महत्वपूर्ण फैसला

0
कोर्ट के बाहर जाकर विवादों का निबटारा कराने वाले आर्बिट्रेटर को महंगी फीस दिये जाने पर पटना हाइकोर्ट ने दिया महत्वपूर्ण फैसला

पटना : कोर्ट के बाहर जाकर मध्यस्थता (आर्बिट्रेशन) के माध्यम से विवादों का निबटारा कराने वाले आर्बिट्रेटर को महंगी फीस दिये जाने के सवाल पर पटना हाइकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है की किसी भी आर्बिट्रेशन के मामले को यदि कोई अकेला आर्बिट्रेटर निष्पादित करता हैं, तो उनकी फीस की राशि आर्बिट्रेशन कानून के तहत अधिकतम निर्धारित सीमा 30 लाख रुपये (20 करोड़ और उससे अधिक रुपये के मामले में 37.5 लाख रुपये) से अधिक नहीं हो सकती है.

न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह की एकलपीठ ने बिहार राज्य सरकार एवमं बेल्ट्रोन की तरफ से दायर दो रिट याचिकाओं को मंजूर करते हुए यह फैसला दिया है. अपने 37 पन्नो के फैसले में न्यायमूर्ति शाह ने दिल्ली हाइकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के कई आदेशों की चर्चा करते हुए कहा है कि यदि भारत में भी मध्यस्थता व समझौता कानून जैसे वैकल्पिक विवाद निपटारे की प्राक्रिया को बढ़ावा देना है तो आर्बिट्रेटर की फीस को तार्किक रखना होगा. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जबतक आर्बिट्रेटरों के लिए फीस निर्धारण नियमावली हाइकोर्ट नहीं बनाती तब तक के लिए कानून में जो अधिकतम राशि की सीमा तय है, उसके दायरे में फीस का भुगतान होगा.

गौरतलब है कि आर्बिट्रेशन के लिये आर्बिट्रेटर की नियुक्ति हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ही होती है. हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज बतौर आर्बिट्रेटर नियुक्त किये जाते है. इन दोनों मामले में भी हाइकोर्ट के ही रिटायर्ड जज आर्बिट्रेटर थे. उन्होंने ही कानून में दिए अधीकतम राशि की सीमा से ज्यादा फीस जमा करने का आदेश पक्षकारों को दिया था.

कानूनी सीमा से ज्यादा फीस देने के आदेश को बिहार सरकार व बेल्ट्रान ने अलग-अलग रिट याचिका दायर कर चुनौती दी थी जिसे मंजूर करते हुए हाइकोर्ट ने उक्त दोनों आर्बिट्रेटरों को फीस देने के आदेश को अवैध करार देते हुए निरस्त कर दिया. गौरतलब है कि भारत मे सिविल मुकदमे खासकर कॉन्ट्रेक्ट से जुड़े विवादों का त्वरित और वैकल्पिक निपटारा अदालत से बाहर जाकर आर्बिट्रेशन/कोंसिलियेशन यानी मध्यस्थता/समझौता कानून 1996 के तहत होता है. इसमें आर्बिट्रेटर को नियुक्त करने की शक्ति हाई कोर्ट को होती है.

Upload By Samir Kumar

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel
Exit mobile version