Bihar Election 2025: जीतन राम मांझी के गढ़ में चिराग की एंट्री, दलित सुरक्षित सीटों पर नजर, हम पार्टी में मची हलचल

Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों के बीच राज्य की सियासत में दलित नेतृत्व को लेकर घमासान तेज हो गया है. गया में चिराग पासवान की ‘नव संकल्प महासभा’ ने पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के गढ़ में सियासी हलचल बढ़ा दी है. यह टकराव अब केवल दो नेताओं का नहीं, बल्कि बिहार की दलित राजनीति की दिशा तय करने वाला बनता जा रहा है.

By Abhinandan Pandey | July 25, 2025 7:13 PM
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Bihar Election 2025: बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं, सियासी सरगर्मी तेज होती जा रही है. खासकर दलित राजनीति एक बार फिर सियासी केंद्र बिंदु बन गई है. इस बार लड़ाई दो प्रमुख चेहरों के बीच है- लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा-रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के संरक्षक व पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के बीच.

दलित नेतृत्व की पारंपरिक जमीन पर भी चिराग की नजर

26 जुलाई को गया के गांधी मैदान में चिराग पासवान द्वारा आयोजित ‘नव संकल्प महासभा’ ने इस टकराव को और मुखर कर दिया है. इस सभा के ज़रिये चिराग ने स्पष्ट कर दिया है कि उनकी नजर अब केवल राज्यव्यापी राजनीति पर नहीं, बल्कि दलित नेतृत्व की पारंपरिक जमीन पर भी है. वह जमीन मांझी का गढ़ मानी जाने वाली गया और मगध क्षेत्र है.

गया में मांझी का दशकों पुराना जनाधार

गया, जिसे बिहार की दलित राजनीति का मजबूत केंद्र माना जाता है, वहां मांझी का दशकों पुराना जनाधार है. वे 50 वर्षों से राज्य की राजनीति में सक्रिय हैं और मुख्यमंत्री से लेकर केंद्रीय मंत्री तक का सफर तय कर चुके हैं. इमामगंज और बाराचट्टी जैसी सीटों पर हम पार्टी का मजबूत पकड़ है. वहीं, राजद का प्रभाव बोधगया में बना हुआ है. ऐसे में चिराग की यह कोशिश है कि वे इन पारंपरिक सीटों पर अपनी पार्टी के लिए जगह बनाएं. जो सीधे तौर पर मांझी की राजनीति को चुनौती देना है.

राजनीति के जानकारों का मानना है कि चिराग पासवान के नेतृत्व में एनडीए को नया बल मिल रहा है और युवा सोच के साथ बिहार की राजनीति को नया रास्ता मिलेगा. उनका यह भी कहना है कि “गया मांझी का गढ़ जरूर है, लेकिन अब वहां चिराग की चुनौती को नकारा नहीं जा सकता.”

गया में लोजपा का प्रभाव अब तक सीमित

बता दें कि गया जिले की 10 विधानसभा सीटों में अब तक लोजपा का प्रभाव सीमित रहा है. 2005 में टेकारी से और 2009 के उपचुनाव में बोधगया से दो बार जीत जरूर मिली, लेकिन बाद में यह सीटें या तो हाथ से निकल गईं या विधायक पार्टी बदल गए. ऐसे में चिराग के लिए यह क्षेत्र पूरी तरह नई चुनौती है.

मांझी भी अपनी जड़ें और जनाधार बचाने में जुटे

चिराग की यह महासभा केवल एक शक्ति प्रदर्शन नहीं, बल्कि संदेश है कि वे अब बिहार की दलित राजनीति के असली उत्तराधिकारी बनने की तैयारी में हैं. दूसरी ओर, मांझी भी अपनी जड़ें और जनाधार बचाने के लिए सक्रिय हो चुके हैं.

चुनाव करीब आते ही टकराव और होगा तीखा

जैसे-जैसे चुनाव करीब आएंगे, यह टकराव और तीखा होगा. चिराग और मांझी के बीच यह संघर्ष न सिर्फ दो दलों का है, बल्कि यह बिहार में दलित नेतृत्व की दिशा और दशा तय करने वाला नया अध्याय बन सकता है. आने वाले समय में इसका असर केवल गया तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि समूचे बिहार की राजनीति में इसकी गूंज सुनाई दे सकती है.

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