प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव
सांसद मनोज झा ने कहा कि पहलगाम में हुई एक दुखद घटना के बाद अचानक प्रधानमंत्री को जातीय जनगणना की याद आई और उन्होंने इसकी सहमति दे दी. उन्होंने सवाल उठाया कि क्या इस तरह की संवेदनशील प्रक्रिया राजनीतिक अवसरवादिता के तहत चलाई जाएगी? साथ ही उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार जातीय जनगणना के नाम पर सिर्फ दिखावा कर रही है और इस पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव है.
‘जनगणना का नहीं मिलेगा ठोस सामाजिक लाभ’
राजद सांसद ने फिर कहा कि सरकार केवल पिछड़े और अति पिछड़े वर्गों की गिनती करेगी, लेकिन उप-जातियों की गणना नहीं की जाएगी. इससे भी बड़ा सवाल यह है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि जातीय आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा. इससे साफ जाहीर होता है कि यह जनगणना केवल एक औपचारिकता बनकर रह जाएगी, जिसका कोई ठोस सामाजिक लाभ नहीं होने वाला है.
ओबीसी-ईबीसी वर्ग की वास्तविक संख्या पर भी सवाल
इसके बाद उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ओबीसी और ईबीसी वर्ग की वास्तविक संख्या बताने से कतरा रही है. उन्होंने पूछा कि जब संसद में ओबीसी को लेकर बहस होगी, तो उनके आंकड़ों और हक की जानकारी कौन देगा? फिर चेतावनी भरे लहजे में सांसद ने कहा कि अगर निजी क्षेत्र में ओबीसी की गिनती को पर्दे के पीछे रखा गया, तो पूरा देश इसके खिलाफ खड़ा होगा.
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जातियों की गिनती के बाद आंकड़े भी हो सार्वजनिक
मनोज झा ने फिर कहा कि जब जातीय जनगणना हो ही रही है, तो इसके बाद की नीति और कार्ययोजना पर भी केंद्र सरकार खुलकर बात करे. यह सवाल बेहद गंभीर है कि जातियों की गिनती तो कर ली जाएगी, लेकिन जब तक उनके आंकड़े सार्वजनिक नहीं होंगे, तब तक सामाजिक न्याय और प्रतिनिधित्व का वास्तविक उद्देश्य पूरा नहीं होगा.
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