Bihar Reservation News: पटना हाइ कोर्ट ने बिहार सरकार द्वारा बिहार में सरकारी नौकरियों में एससी , एसटी , ईबीसी व अन्य पिछड़े वर्गों को आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 फीसदी किए जाने संबंधी निर्णय को निरस्त कर दिया. कोर्ट ने कहा की सरकार द्वारा लिया गया यह निर्णय गैर कानूनी और संविधान के विरुद्ध है. मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सरकार के इस निर्णय को चुनौती देने वाली गौरव कुमार एवं अन्य द्वारा दायर लोकहित याचिका पर सुनवाई पूरी कर अपना निर्णय 11 मार्च को ही सुरक्षित रख लिया था. कोर्ट ने गुरुवार को अपना फैसला सुनाया.
संविधान की धारा का उल्लंघन बताया गया..
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि 75 फीसदी आरक्षण संविधान की धारा 14 और 16 का उल्लंघन है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 50 फीसदी आरक्षण की जो सीमा निर्धारित की है, यह दोनों कानून उसका सीधा-सीधा उल्लंघन कर रहे हैं. कोर्ट ने कहा कि अगर आरक्षण की सीमा बढ़ाने की जरूरत पड़ेगी तो यह संवैधानिक बेंच ही तय करेंगी.सुनवाई के दौरान कोर्ट को यह बताया गया था कि राज्य सरकार द्वारा नौ नवंबर, 2023 को पारित नये आरक्षण कानून में बहुत खामियां हैं. यह संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध भी है.
सरकार ने किस आधार पर दिया था आरक्षण
कोर्ट को बताया गया था कि सरकार द्वारा दिया गया आरक्षण इन वर्गों की आबादी के बजाये जिनके सामाजिक और शिक्षा में पिछड़ेपन पर आधारित होना चाहिए. कोर्ट को बताया गया था कि बिहार सरकार का फैसला संविधान के का उल्लंघन है, जिसमें किसी भी कार्यालय में रोजगार या नियुक्ति से संबंधित मामलों में सभी नागरिकों के लिए समानता का अवसर प्रदान करता है. किसी भी प्रकार के भेदभाव पर रोक लगाता है. सरकार ने यह आरक्षण अनुपातिक आधार पर नहीं किया है. इसमें राज्य सरकार ने एससी,एसटी,ईबीसी व अन्य पिछड़े वर्गों को मिल रहे आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 फीसदी कर दिया है जबकि सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों के लिए मात्र 35 फीसदी आरक्षण ही सरकारी सेवा में दिए जाने के निर्णय राज्य सरकार ने लिया है. जातिगत सर्वेक्षण के बाद जातियों के अनुपातिक आधार पर आरक्षण का यह निर्णय लिया गया है न कि सरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व के आधार पर यह निर्णय लिया गया है.
कोर्ट को क्या बताया गया था..
कोर्ट को बताया गया था कि सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामलें में आरक्षण की सीमा पर 50 प्रतिशत का प्रतिबंध लगाया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि आरक्षण किसी भी स्थिति में 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं किया जा सकता है. कोर्ट को बताया गया था कि जातिगत सर्वेक्षण का मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के फिलहाल लंबित है. सुप्रीम कोर्ट में इस आधार पर राज्य सरकार के उस निर्णय को चुनौती दी गयी है, जिसमें राज्य सरकार ने सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से बढ़ा कर 65 फीसदी कर दिया था.
महाधिवक्ता ने रखा था बिहार सरकार का पक्ष
राज्य सरकार का पक्ष रखते हुए महाधिवक्ता पीके शाही ने कोर्ट को बताया था कि सरकार ने यह आरक्षण इन वर्गों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाने के कारण देने का निर्णय लिया है.सरकार ने यह आरक्षण अनुपातिक आधार पर नहीं किया है.
अब आगे क्या करेगी बिहार सरकार?
बिहार के उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने आरक्षण की सीमा बढ़ाये जाने संबंधी सरकार के फैसले को पटना हाइकोर्ट द्वारा रद्द कर दिये जाने के मामले मेे कहा कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगी. सम्राट चौधरी ने कहा कि शीर्ष अदालत से अपील की गुहार की जायेगी और हम लड़ेंगे. बिहार में कोई भी वर्ग आरक्षण के बिना नहीं है. सुप्रीम कोर्ट में अपनी बातों को रखेंगे.
इधर, महाधिवक्ता ने कहा
इधर, महाधिवक्ता पीके शाही ने प्रभात खबर से बातचीत में कहा है कि इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने या अन्य फैसला लेने का अधिकार राज्य सरकार का है. यदि राज्य सरकार उनसे मंतव्य मांगेगी तो वे अपना मंतव्य राज्य सरकार को दे देंगे.
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