बिहार के स्कूलों में फीस भारी भरकम, सुविधा के नाम पर लाइब्रेरी विथ बुक तक नहीं

Bihar School: बिहार के केवल सात फीसदी (588 ) प्राइवेट स्कूल ही ऐसे हैं, जहां पर फर्स्ट ऐड की सुविधा है. यह रिपोर्ट शिक्षा मंत्रालय की डिपार्टमेंट स्कूल ऑफ एजुकेशन एंड लिट्रेसी की है.

By Ashish Jha | August 9, 2024 8:30 AM
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Bihar School: राजदेव पांडेय, पटना. भारी भरकम फीस लेने के बाद भी राज्य के प्राइवेट स्कूलों में किताब के साथ लाइब्रेरी और फर्स्ट ऐड की सुविधाओं का जबरदस्त अभाव है. इसका खुलासा केंद्र सरकार के शिक्षा मंत्रालय की एक रिपोर्ट में हुआ है. रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 93 प्रतिशत (7509) प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को फर्स्ट ऐड की सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं. केवल सात फीसदी (588 ) प्राइवेट स्कूल ही ऐसे हैं, जहां पर फर्स्ट ऐड की सुविधा है. यह रिपोर्ट शिक्षा मंत्रालय की डिपार्टमेंट स्कूल ऑफ एजुकेशन एंड लिट्रेसी की है.

विशेष तथ्य

  • बिहार में कुल स्कूलों की संख्या- 93165
  • कुल सरकारी स्कूलों की संख्या- 75558
  • कुल प्राइवेट स्कूलों की संख्या- 8097
  • कुल अनुदानित स्कूलों की संख्या- 742
  • अन्य तरह के स्कूलों की संख्या- 8768

केवन सात प्रतिशत स्कूलों में फर्स्ट ऐड की सुविधा

2022 की अब जारी हुई आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार राज्य के कुल 93165 स्कूलों में से 86 फीसदी (80264) स्कूलों में भी प्रारंभिक चिकित्सा की छोटी-मोटी सुविधा उपलब्ध नहीं है. केवल 14 प्रतिशत (12901) स्कूल में यह सुविधा मौजूद है. प्राइवेट स्कूलों की तरह 93 प्रतिशत सरकारी स्कूलों (70434 ) में भी फर्स्ट ऐड या किसी तरह की चिकित्सीय सुविधा नहीं है. केवल सात प्रतिशत (5124 ) स्कूलों में ही यह सुविधा है. इसी तरह 53 प्रतिशत अनुदानित स्कूलों में यह सुविधा है, जबकि 47 फीसदी अनुदानित स्कूलों में यह सुविधा नहीं है. राज्य में संचालित अन्य तरह के स्कूलों में से 84 प्रतिशत (7337 ) में किसी तरह की शुरुआती चिकित्सीय प्रबंध नहीं है.

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किताबों के नाम पर पैसा कमाते हैं निजी स्कूल

इसी तरह राज्य के कुल 93165 स्कूलों में से 44 % (41376) स्कूलों में लाइब्रेरी विथ बुक उपलब्ध नहीं है. अगर इस सुविधा की उपलब्धता को स्कूल की श्रेणी के हिसाब देखें तो 74 % (56154) सरकारी स्कूल , 65 % (5279 )प्राइवेट स्कूल, 49 % अनुदानित और 41 % अन्य श्रेणी के स्कूलों में किताब सहित पुस्तकालय का अभाव है. हैरत की बात है कि सरकारी को छोड़ दें, तो निजी स्कूल किताबों के नाम पर जबरदस्त पैसा कमाते हैं. उनकी किताबों का अलग ही बाजार है.

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