BRA Bihar University: जूलाजी में रिसर्च स्कॉलर्स की लूट, पढ़िए क्या है पूरी कहानी…

BRA Bihar University प्रो. शिवानंद सिंह ने अपनी एक विशेष कृपापात्र अतिथि शिक्षिका को भी एक तेज-तर्रार नियमित असिस्टेंट प्रोफेसर के साथ को-गाइड बनाया है. सूत्रों का कहना है कि अतिथि शिक्षक को भी सह-पर्यवेक्षक (को-गाइड) बनाने के लिए कुलपति के पास भेजा गया है. जो कि नियम के खिलाफ है.

By RajeshKumar Ojha | February 18, 2025 7:15 PM
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BRA Bihar University बीआरए बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर का जूलॉजी विश्वविद्यालय विभाग अपने विभागाध्यक्ष प्रो. शिवानंद सिंह की कारस्तानियों के कारण एक बार फिर से विवादों का केंद्र बन गया है. विभागाध्यक्ष की मनमानी के खिलाफ कई छात्रों ने कुलपति से इसकी शिकायत करते हुए आरोप लगाया है कि गाइड के आवंटन में विभागाध्यक्ष अपनी मनमानी कर रहे हैं. पैट 2021 के छात्रों ने तो इसको लेकर कुलपति को आवेदन देते हुए उसकी एक प्रति महामहिम कुलाधिपति महोदय को भी प्रेषित किया था. इसके बाद भी शोधार्थियों को गाइड आवंटन में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के दिशा-निर्देशों को दरकिनारा किया जा रहा है.

क्या है प्रवधान

बीआरए बिहार विश्वविद्यालय में पीएच डी में रजिस्ट्रेशन के लिए यूजीसी (पीएच डी उपाधि प्रदान करने हेतु न्यूनतम मानदंड और प्रक्रिया) विनियम 2016 का ही अनुपालन किया जा रहा है, जबकि इस संदर्भ में यूजीसी विनियम 2022 आ चुका है. जो कि 7 नवम्बर 2022 से ही प्रभावी है. जिसके प्रस्तावना में स्पष्ट उल्लिखित है कि यह परिनियम इस संदर्भ में जारी 2016 के परिनियम को प्रतिस्थापित अर्थात सुपरसीड करेगा और भारत के असाधारण गजट में प्रकाशन की तिथि से प्रभावकारी होगा.

जन्तु विज्ञान विभाग के अध्यक्ष पर क्या है आरोप

जूलॉजी विश्वविद्यालय विभागाध्यक्ष प्रो.शिवानंद सिंह एक बार फिर से चर्चा में हैं. वैसे ये हाल के दिनों में लगातार चर्चा में हैं. लेकिन, वे इस दफा छात्रों के ताजा आरोप को लेकर चर्चा में हैं. छात्र इनपर आरोप लगाते हुए इनका फोटो और वीडियो शेयर कर रहे हैं. इनका कहना है कि जूलॉजी विश्वविद्यालय विभागाध्यक्ष प्रो.शिवानंद सिंह के मनमानी से पीएच डी डिग्री की वैधता ही खतरे में पड़ जाएगी. बता दें परिनियम 2022 में शोध सुपरवाईजर की पात्रता बताते हुए कण्डिका 6.3 में स्पष्ट लिखा है कि वैसे संकाय सदस्य जिनकी सेवानिवृत्ति में तीन वर्ष से कम की अवधि बची हुई है, उन्हें पर्यवेक्षण में नए शोधार्थी लेने की अनुमति नहीं होगी.

जबकि बीआरए बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर जन्तु विज्ञान विभाग के अध्यक्ष- सह- संकायाध्यक्ष विज्ञान संकाय प्रो. शिवानंद सिंह के अवकाशप्राप्ति में मात्र पांच महीने बचे हैं. इसके बाद भी वे कई शोधार्थियों को अपने पर्यवेक्षण में करा रहे हैं. उन्होंने स्वयं के लिए ही ऐसा नहीं किया है बल्कि एक अन्य प्रोफेसर जिनके रिटायर्मेंट में मात्र कुछ दिन ही बाकी हैं उनको भी शोधार्थियों की रेवडियां प्रदान की हैं. तर्क यह दिया जा रहा है कि इस विश्वविद्यालय में तो अभी परिनियम 2016 ही प्रभावकारी है. जबकि पटना विश्वविद्यालय में भी रिटायर्मेंट के करीब पहुंचे संकाय सदस्यों ने स्वत: ही अपने अधीनस्थ कोई शोधार्थी नहीं लिया है जिससे परिनियम 2016 और 2022 दोनो के संदर्भित प्रावधानों का स्वमेव अनुपालन हो जाए. बहरहाल जब कोर्सवर्क शुरु होने से पहले ही यूजीसी ने परिनियम 2016 को सुपरसीड कर दिया था. फिर सुपरसीडेड परिनियम कैसे प्रभावकारी है? क्या विश्वविद्यालय यूजीसी के नियम-परिनियम से उपर है?

यदि परिनियम 2022 के प्रावधानों को मानते हुए ही पर्यवेक्षकों का बंटवारा होता तो क्या शोधार्थी का हित ज्यादा सुरक्षित नहीं रहता? इस संदर्भ में परिनियम 2016 की कण्डिका 9.3 में भी विनिर्दिष्ट है कि अवकाशप्राप्ति के उपरांत कोई संकाय सदस्य अपने अधीनस्थ कोई पीएच डी शोधार्थी नहीं ले सकते हैं. जबकि प्रो शिवानंद सिंह ने प्रति पर्यवेक्षक के अधीनस्थ अधिकतम शोथार्थी की संख्या से संबंधित परिनियम 2016 की कण्डिका 2:2 और परिनियम 2022 की कण्डिका 6.3 की भी धज्जियाँ उड़ा दी है.

दोनों परिनियमों में किसी समय प्रोफेसर के अधीनस्थ आठ से अधिक शोधार्थी नहीं रखने का प्रावधान है जबकि उन्होंने न केवल अपने अंदर इस संख्या से काफी अधिक शोधार्थियों को रखा है बल्कि रिटायर्मेंट के निकट एक अन्य प्रोफेसर को भी दिल खोलकर शोधार्थी बांट दिया है. सूत्र बताते हैं कि इसका विरोध करने वालों को अतिरिक्त शोधार्थी देकर उसका मुंह बंद कर रहे हैं.सिंह इसे जायज ठहराने के लिए कुलपति के तथाकथित ‘मौखिक आदेश’ का हवाला देते हैं.

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