Chhath Puja: कैसे जन्मा लोकआस्था का महापर्व छठ, जानिए पटना यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर से…
Chhath Puja : लोक आस्था का महापर्व छठ मंगलवार को नहाए-खाए के साथ शुरू हो जाएगा. लेकिन छठ के इस महापर्व का जन्म कैसे हुआ? इस पर पढ़िए पटना विश्वविद्यालय के हिंदी प्रोफेसर तरुण कुमार का लेख...
By Anand Shekhar | November 5, 2024 7:18 AM
Chhath Puja: महा छठ व्रत सूर्य को कृतज्ञता ज्ञापित करने वाला लोक पर्व माना जाना जाता है. हम मानव, सौर मंडल के सबसे छोटे सदस्यों में एक हैं. चूंकि सूर्य, सौरमंडल की धुरी है. वह पृथ्वी पर होने वाले हर सृजन के केंद्र में है. इसलिए वह हमारा अभिभावक भी हैं. दरअसल वर्षा चक्र से लेकर अन्न की उर्वरता तक सूर्य पर ही निर्भर करती है. बिहार के लोग सदियों से जीवन के केंद्र में सूर्य की महत्ता को समझते और परखते आये हैं. इसलिए सूर्य को हर साल दोनों फसल चक्र से उपजे पहले अन्न को सूर्य को समर्पित कर ही उसका खुद उपयोग करते हैं.
प्रकृति के प्रति बिहारियों के नजरिये से जन्मा लोकपर्व छठ
यह तो पता ही होगा कि खरीफ और रबी फसल चक्र के तत्काल बाद छठ व्रत मनाया जाता है. यह संयोग नहीं है, बल्कि हम बिहार वासियों की मेधा का परिणाम है. यह कहना गलत नहीं होगा कि हम बिहारियों के वैज्ञानिक नजरिये से उपजा यह एक महा लोकपर्व है. इस धारणा के साथ कि उगता ही नहीं, डूबता सूरज भी हमारी श्रद्धा का केंद्र है. सूर्य के प्रति इतनी अगाध श्रद्धा और निष्ठा है कि लोग यह मानते हैं कि अस्ताचलगामी सूर्य अंधेरे के बाद वह फिर उजाला लेकर जरूर आयेगा और वह हमारा कल्याण करेगा यह धार्मिक मान्यताओं के साथ मनाया जाने वाला अनोखा लोकपर्व है. इस पर्व में किसी तरह का कोई कर्मकांड नहीं है. पंडित की कोई भूमिका नहीं है. मन और आत्मा की पवित्रता से अपने देव को पूजने की विधि में किसी भी जल आगार में खड़े होकर सूर्य को जल अर्पित करना होता है.
समाज को जोड़ने वाला सामाजिक पर्व है छठ
दरअसल सूर्य और जन के बीच के रिश्ते स्नेहिल भाव की डोर से बंधे होते हैं. बिहार के लोगों ने सूर्य के साथ अपने रिश्तों की प्राण प्रतिष्ठा भी की है. यही वजह है कि बिहार के विभिन्न भागों में एक-दो-तीन-चार नहीं बल्कि सूर्य के तमाम मंदिर मिल जायेंगे, जहां सूर्य को शताब्दियों से पूजा जा रहा है. यह पर्व पूरे समाज को जोड़ने वाला सामाजिक पर्व है. इस व्रत को करने में जाति-भेद और धार्मिक विभेद नहीं है.
शताब्दियों से हिंदुओं के साथ- साथ मुस्लिम भी यह व्रत करते आ रहे हैं. इसमें ऊंच-नीच, छुआ-छूत और अमीर-गरीब का भी कोई फर्क नहीं है. छठ घाट पर सभी समान होते हैं. एक साथ पूरे बंधुत्व के साथ सूर्य को जल अर्पित करते है. यह पर्व बिहारियों के मन-कर्म और वचन में इस तरह रम गया है कि वह दुनिया के किसी भी कोने में हो, वह इस पर्व को मनाता जरूर हो. अगर उसे मौका मिलता है तो वह अपनी ‘पुण्य भूमि” बिहार आकर गंगा मैया या अपने किसी भी क्षेत्र की सरिता में सूर्य को जल अर्पित करना चाहता है.
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