संवाददाता, पटना: बिहार के पूर्णिया में डायन बताकर एक ही परिवार के पांच लोगों को जिंदा जलाये जाने की घटना के बाद अब चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (सीएनएलयू), पटना ने बड़ा कदम उठाया है. विश्वविद्यालय के जेंडर रिसोर्स सेंटर (जीआरसी) ने इस विषय पर सामाजिक और कानूनी शोध करने का फैसला किया है. नौ जुलाई को सीएनएलयू में इस मुद्दे पर एक आपात बैठक हुई, जिसकी अध्यक्षता कुलपति प्रो फैजान मुस्तफा ने की. उन्होंने कहा कि केवल कानून बना देने से समाज में बदलाव नहीं आता, जब तक लोगों की सोच, सामाजिक रीतियों और स्थानीय व्यवस्थाओं में बदलाव न हो. उन्होंने डायन-बिसाही के मामलों को अंधविश्वास, डर और महिलाओं के खिलाफ भेदभाव से जुड़ा बताया. बैठक में कानून विभाग के प्रो पीपी राव ने बताया कि साल 2000 से 2016 के बीच देशभर में 2,500 से ज्यादा महिलाओं की हत्या डायन कहकर कर दी गयी. वहीं, 2023-24 में एक सर्वे के अनुसार बिहार में करीब 75,000 महिलाएं अब भी डायन कहलाने के खतरे में हैं. सहायक प्रोफेसर डॉ फादर पीटर लाडिस एफ ने कहा कि डायन प्रथा पर रोक तभी संभव है जब इस पर गहराई से तथ्य आधारित अध्ययन किया जाये. जेंडर रिसोर्स सेंटर की निदेशक डॉ आयुषी दुबे ने बिहार डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम, 1999 की प्रभावशीलता पर भी सवाल उठाये. उन्होंने कहा कि इस कानून पर सामाजिक और कानूनी दोनों नजरियों से समीक्षा जरूरी है. शोध के दौरान जाति, वर्ग, धर्म और लिंग के प्रभावों का भी विश्लेषण किया जायेगा. बैठक के अंत में यह तय हुआ कि इस शोध को सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों, फंडिंग एजेंसियों और स्थानीय समुदायों की मदद से आगे बढ़ाया जाएगा, ताकि समाज में महिलाओं के खिलाफ इस तरह की हिंसा को जड़ से खत्म किया जा सके.
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