आधा भारत नहीं जानता क्या है पान का धार्मिक महत्व, मिथिला में नहीं खानेवाले भी क्यों नहीं करते लेने से इनकार

Culture of Mithila: मिथिला की सभ्यता और संस्कृति कई मायनों में अपनी अलग पहचान बनाये हुए है. मिथिला में पान, माछ व मखान की चर्चा खूब होती है. इन्हें मिथिला की पहचान के रूप में देखा जाता है.

By Ashish Jha | June 17, 2025 7:39 AM
feature

Culture of Mithila: पटना. मिथिला में पान से स्वागत और पान के दान की पुरातन परंपरा आज भी देखने को मिलती है. मिथिला में पान लेने से अस्वीकार करना देनेवाले का अपमान समझा जाता है, ऐसे में जो पान का सेवन नहीं करते हैं, वो भी देनेवाले का सम्मान रखने के लिए पान को स्वीकार कर हाथ में रख लेते हैं. आखिर इस परंपरा के पीछे कौन सा तर्क या विचार है. मिथिला में किसी को पान क्यों परोसा जाता है. इस विषय पर हिंदू धर्म ग्रंथों में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है.

पहले पूर्वोत्तर से मध्य भारत तक प्रचलित थी परंपरा

मिथिला की यह परंपरा कई ग्रंथों में उल्लेखित तथ्यों पर आधारित है. पटना महावीर मंदिर के प्रकाशन विभागाध्यक्ष पंडित भवनाथ झा कहते हैं कि यह परंपरा पहले पूर्वोत्तर भारत से लेकर कनौज मध्य भारत तक प्रचलित थी, लेकिन अब सिमट कर मिथिला में ही देखने को मिल रही है. वामोरि नारायण कृत “सभाकौमुदी” नामक ग्रन्थ का उल्लेख करते हुए पंडित भवनाथ झा कहते हैं कि राजा के यहां जब कोई सम्मानित व्यक्ति जाते थे, तो सबसे पहले उन्हें ताम्बूल देकर उनका स्वागत होता था. श्रीहर्ष के बारे में कहा गया है- ताम्बूलद्वयमासनं च लभते यः कान्यकुब्जेश्वरात्. वे कन्नौज के राजा के दरबार में जोड़ा पान पाते थे. पंडित भवनाथ झा पान को लेकर स्थिति सपष्ट करते हुए कहते हैं कि ताम्बूल में जर्दा का उपयोग नहीं होता. जर्दा से परहेज रखें, वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है.

पान से बड़ी दक्षिणा इस धरती पर कुछ नहीं

शास्त्र और व्यावहार की चर्चा करते हुए पंडित भवनाथ झा कहते हैं कि मिथिला में भोज का बजट चाहे जितना कम हो, पर पान की व्यवस्था रखना अनिवार्य रहता है. पान का जो आध्यात्मिक महत्त्व है वह आम लोगों के बीच अब प्रचलित नहीं रही, जिसके कारण परंपरा खत्म हो रही है. भारतीय दर्शन में सुपारी ब्रह्मा के स्वरूप तत्व, ताम्बूल को विष्णु के स्वरूप तत्व और चूना को महादेव का स्वरूप तत्व माना गया है. इस प्रकार पान त्रिदेव का आशिर्वाद स्वरूप शुभकारक है. इसका दान अस्वीकार करना अधर्म माना गया है. शास्त्र कहता है कि किसी ने यदि आपके बच्चे को दूर्वाक्षत देकर आशीर्वाद दिया है, तो उसकी दक्षिणा केवल पान ही हो सकती है. पृथ्वी पर किसी भी धन-दौलत में वह सामर्थ्य नहीं कि आशीर्वाद के बदले में अर्पित की जा सके. लेकिन पान के बीड़ा में वह सामर्थ्य है. पान से बड़ी दक्षिणा इस धरती पर कुछ नहीं है.

Also Read: Folk Band: मिथिला का ‘फोक बैंड’ रसनचौकी, इन पांच वाद्ययंत्रों पर कभी नहीं बजता शोक धुन

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें

यहां पटना न्यूज़ (Patna News) , पटना हिंदी समाचार (Patna News in Hindi), ताज़ा पटना समाचार (Latest Patna Samachar), पटना पॉलिटिक्स न्यूज़ (Patna Politics News), पटना एजुकेशन न्यूज़ (Patna Education News), पटना मौसम न्यूज़ (Patna Weather News) और पटना क्षेत्र की हर छोटी और बड़ी खबर पढ़े सिर्फ प्रभात खबर पर.

होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version