संवाददाता, पटना राजकीय संस्कृत महाविद्यालय, पटना में सारगर्भित व्याख्यान माला का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में प्रमुख वक्ता के रूप में लाल बहादुर शास्त्री केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली के न्याय-वैशेषिक विभाग के अध्यक्ष प्रो महानंद झा ने उपस्थित होकर प्रमाण विषय पर अपना विमर्श प्रस्तुत किया. प्रो झा ने न्याय दर्शन के चार प्रमाण प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान व शब्द की वैज्ञानिक व्याख्या करते हुए यह बताया कि प्रमाणों की सम्यक जानकारी के बिना शास्त्रों का यथार्थ ज्ञान संभव नहीं है. उन्होंने विद्यार्थियों से आग्रह किया कि वे प्रमाणों के अध्ययन में रुचि लें और शास्त्रों के प्रति श्रद्धा का भाव बनाये रखें. वहीं दर्शनशास्त्र विभाग के आचार्य डॉ शशिकांत तिवारी ने प्रमाणों की विविधता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि विभिन्न दर्शनों ने प्रमाणों की भिन्न-भिन्न संख्या स्वीकार की है. न्याय दर्शन में चार प्रमाण, सांख्य तथा योग दर्शन में तीन-तीन प्रमाण माने गये हैं. डॉ तिवारी ने यह भी स्पष्ट किया कि इंद्रिय और मन का संयोग न होने पर प्रत्यक्ष ज्ञान संभव नहीं हो पाता. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो मनोज कुमार ने कहा कि प्रमाण जैसे जटिल विषय को भलीभांति समझाने के लिए भविष्य में और भी व्याख्यान आयोजित किए जायेंगे. उन्होंने यह भी कहा कि महाविद्यालय संस्कृत भाषा और शास्त्रों के प्रचार-प्रसार के लिए सदैव प्रतिबद्ध है.
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