कोविड 19 वैक्सीन, चंद्रयान-1 व 2, आदित्य एल-1 के बारे में पढ़ेंगे आठवीं के स्टूडेंट्स

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीइआरटी) की आठवीं कक्षा की साइंस की पाठयपुस्तक ‘क्यूरियोसिटी’ में अब छात्र कोरोना काल में भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र में क्रांति, मेक इन इंडिया और कोविड 19 वैक्सीन के बारे में पढ़ेंगे.

By DURGESH KUMAR | July 13, 2025 8:34 PM
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-एनसीइआरटटी ने कक्षा आठवीं की साइंस पुस्तक ‘क्यूरियोसिटी’ में जोड़े हैं कई महत्वपूर्ण चैप्टर संवाददाता, पटना: राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीइआरटी) की आठवीं कक्षा की साइंस की पाठयपुस्तक ‘क्यूरियोसिटी’ में अब छात्र कोरोना काल में भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र में क्रांति, मेक इन इंडिया और कोविड 19 वैक्सीन के बारे में पढ़ेंगे. इसके साथ स्टूडेंट्स ‘हमारा साइंटिफिक हेरिटेज’ में इसरो का सफर, चंद्रयान-1 व 2, आदित्य एल-1 के बारे में जानेंगे. इसरो द्वारा भेजे गये विभिन्न सेटेलाइट का भी उल्लेख इसमें किया गया है. जिसमें आर्टिफिशियल सेटेलाइट भी शामिल है. इससे मौसम की सटीक जानकारी, डिजास्टर मैनेजमेंट व साइंटिफिक रिसर्च में मदद मिलती है. पुस्तक में भारतीय वैज्ञानिकों में विभिन्न प्रकार के पौधों से मलेरिया की दवा तैयार करने वाली रसायनशास्त्री असीमा चटर्जी, महान भौतिक विज्ञानी व खगोलशास्त्री मेघनाद साहा, कैंसर और कैंसर के रोकथाम पर काम करने वाली डॉ कमल रणदिवे को भी शामिल किया है. पर्यावरण जागरूकता, नैतिक मूल्यों और भारत की ज्ञान की समृद्ध परंपरा से रूबरू कराया गया है: ‘क्यूरियोसिटी’ पाठयपुस्तक में जानकारी के साथ जिज्ञासाओं को भी दूर किया है. यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनइपी) 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एनसीएफ ) 2023 पर आधारित है. स्टूडेंट्स भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान के अलावा पृथ्वी विज्ञान भी पढ़ेंगे. इसका मकसद, पर्यावरण जागरूकता, नैतिक मूल्यों और भारत की ज्ञान की समृद्ध परंपरा से रूबरू करवाना है. उदाहरण के तौर पर भारत की ज्ञान की समृद्ध परंपरा में आधुनिक टीकों से बहुत पहले, भारत में चेचक से बचाव के लिए ‘वैरियोलाइजेशन’ नाम की पारंपरिक विधि से इलाज होता था. प्राचीन भारतीय दार्शनिक आचार्य कणाद ने सबसे पहले परमाणु (परमाणु) की अवधारणा पेश की थी. उनका मानना था कि पदार्थ परमाणु नामक सूक्ष्म, शाश्वत कणों से बना है. प्राचीन भारतीय ग्रंथ चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, रसरत्न समुच्चय, रस जल निधि आदि में औषधीय प्रयोजनों के लिए मिश्र धातुओं के उपयोग और एलोपैथी के अलावा भारत में प्राचीन काल से आयुर्वेद, सिद्धा व पांरपरिक चिकित्सा प्रणाली के बारे में बताया है. इससे छात्रों को काफी कुछ जानने का मौका मिलेगा. उत्तरायण और दक्षिणायन सूर्य की गति की दो स्थितियां 12वीं शताब्दी के प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री भास्कराचार्य -दो भी शामिल हैं. उन्होंने 800 साल पहले माना, पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को अपनी ओर आकर्षित करती है. उन्होंने ग्रहों की स्थिति, संयोजनों, ग्रहणों, ब्रह्मांड विज्ञान, भूगोल, और गणितीय तकनीकों को लिखा. वहीं, उतरायण और दक्षिणयन के बारे में बताया था.

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