Exclusive Interview: गरिमा गृह से सतरंगी दोस्ताना तक, कैसे पटना की रेशमा प्रसाद बनीं ट्रांसजेंडरों की आवाज
Exclusive Interview: रेशमा प्रसाद ने ट्रांसजेंडरों के शैक्षणिक, सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए काफी काम किया है. पेश है प्रभात खबर से रेशमा प्रसाद की बातचीत के मुख्य अंश...
By Anand Shekhar | October 6, 2024 6:15 AM
Exclusive Interview: रेशमा प्रसाद अपनी सामाजिक संस्था ‘दोस्ताना सफर’ के माध्यम से ट्रांसजेंडर्स के शैक्षणिक, सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए वर्षों से कार्य कर रही हैं. उन्हीं के प्रयास से पटना के खगौल में केंद्र सरकार ने ट्रांसजेंडर्स के लिए ‘गरिमा गृह’ की स्थापना की है, जहां आश्रयविहीन ट्रांसजेंडर रहती हैं. रेशमा प्रसाद को पिछले साल ही पटना विश्वविद्यालय के सीनेट का सदस्य मनोनीत किया गया था. तीन साल तक के लिए सीनेट सदस्य बनाकर बिहार के राज्यपाल एवं कुलाधिपति राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर ने उन्हें एक बड़ी जिम्मेदारी दी है.
Q. आपने ट्रांसजेंडर्स के शैक्षणिक, सामाजिक व आर्थिक उत्थान के लिए काफी कुछ किया है. क्या इसमें कभी कोई चुनौतियां नहीं आयी?
चुनौतियां तो काफी आयीं पर मैंने हौसला नहीं छोड़ा, इसलिए आज कामयाब हूं. हमारे जैसा जीवन जीने वाला व्यक्ति कभी सोच नहीं सकता कि उनके हक के लिए भी कानून में कोई अधिकार है और वो उसकी मदद से मुख्यधारा से जुड़ सकते हैं. मैंने सबसे पहले ट्रांसजेंडर पर्सन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) एक्ट 2019 को कानूनी स्वरूप में लेकर आयी और लागू करवाया. सहमति के बाद जब ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड बिहार, बना.
आज इसका नाम ‘बिहार राज्य किन्नर कल्याण बोर्ड’ है और मैं उसकी पहली सदस्य बनी थी. नेशनल काउंसिल फॉर ट्रांसजेंडर पर्सन में सदस्य रूप में चयनित हुई. मेरी विशेषज्ञता लैंगिक आधार पर है और जब उनकी स्वीकार्यता सामाजिक तौर पर हुई, तो मुझे नगर निगम का ब्रांड एम्बेसडर चुना गया. पीयू की सीनेट सदस्य के लिए चुना गया. इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया भारत सरकार नयी दिल्ली में एडवाइजरी मेंबर हूं. जिलों की आंतरिक शिकायत समिति की भी सदस्य हूं. कानून से जुड़ी जानकारी को लेकर भी ट्रेनिंग देती हूं.
Q. भोजपुर से आपका पटना कैसे आना हुआ?
साल 2002 में पहली बार मैं भोजपुर से पटना आयी थी. उस वक्त मैं यहां के बारे में और यहां के लोगों के बारे में नहीं जानती थी. रिसर्च स्कॉलर के तौर पर साल 2006 में यहां दोबारा आना हुआ और मेरी जिंदगी का यू टर्न यही से शुरू हुआ. यहां मैंने अपने जीवन के अधिकारों को लेकर संघर्ष की शुरुआत की. खुद के लिए लड़ते हुए समाज में हम जैसों को पहचान मिले, इसके लिए आवाज बुलंद की.
Q. गरिमा गृह से लेकर सतरंगी दोस्ताना रेस्टोरेंट तक का सफर कैसे तय हुआ?
जब मैं पटना आयी, तो सोचती थी कि काश हमारे समुदाय के लिए एक खास जगह हो, जहां हम सुख-दु:ख बांटकर अपने लोगों से मिल सकें. सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की ‘गरिमा गृह’ योजना के तहत स्थापित इस आश्रय गृह की स्थापना का उद्देश्य ट्रांसजेंडरों को मुख्यधारा में शामिल करना है. साल 2021 में खगौल में यह सेंटर बनाया गया, जिसमें स्थानीय लोगों का भरपूर सहयोग मिला.
यहां रहने वाले समुदाय के लोगों ने अपनी इच्छाओं को पूरा करना शुरू किया जिसमें पढ़ाई, कंपीटीटिव परीक्षा और स्किल से जुड़ा प्रशिक्षण भी उन्हें मिला. आने वाले भविष्य के लिए चिंता हुई क्योंकि मुख्यधारा में जोड़ने और आम लोगों के बीच काम करने का संघर्ष आज भी जारी है. इसी वजह से सतरंगी दोस्ताना रेस्टोरेंट की शुरुआत की.
Q. आज जिस तरह से ट्रांसजेंडर संघर्ष कर रहे हैं, ऐसे में आप लोगों से क्या कहना चाहती हैं?
हमें किसी से कुछ नहीं चाहिए. हमें अपने घर में स्वीकार्यता की जरूरत है. अगर परिवार साथ देगा, तो हम रोड और ट्रेन पर नजर नहीं आयेंगे. हम भी स्वतंत्र होकर अपनी जिंदगी जीना चाहते हैं.
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