International Museum Day: इंटरनेशनल म्यूजियम डे (अंतरराष्ट्रीय म्यूजियम दिवस) 18 मई को मनाया जाता है. इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ म्यूजियम (आइकॉम) की एडवाइजरी कमेटी हर साल इस कार्यक्रम के लिए एक थीम तय करती है और इसे सेलिब्रेट करती हैं.
1977 से हुई थी इसकी शुरुआत
वर्ष 1977 का वह समय था, जब ‘इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ म्यूजियम’ ने अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस की शुरुआत की थी. इसके बाद यह हर साल 18 मई को मनाया जाने लगा. खास बात यह है कि पूरी दुनिया के संग्रहालय या म्यूजियम अपने-अपने देशों में यह आयोजन करते हैं. इस दिवस को मनाने का उद्देश्य लोगों में संग्रहालयों के प्रति जागरूकता फैलाना और उन्हें संग्रहालयों में जाकर अपने इतिहास को जानने के प्रति जागरूक बनाना है.
बिहार की ये बेटियां म्यूजियोलॉजिस्ट्स बन संभाल रहीं म्यूजियम
संग्रहालय व समाज के बीच संवाद की कड़ी बनीं मोमिता: मोमिता घोष, डिप्टी डायरेक्टर, बिहार म्यूजियम
कोलकाता की मूल निवासी और वर्तमान में गर्दनीबाग, पटना में रहने वाली मोमिता घोष बिहार संग्रहालय की डिप्टी डायरेक्टर हैं. उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से म्यूजियोलॉजी में मास्टर्स किया और इंडियन म्यूजियम (कोलकाता) और इलाहाबाद म्यूजियम में क्यूरेटोरियल एसोसिएट के रूप में अनुभव प्राप्त किया. वर्ष 2011 में बिहार संग्रहालय से जुड़ीं और 11 वर्षों तक क्यूरेटर के रूप में कार्य करते हुए संग्रहालय की विकास यात्रा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. वे वर्तमान में प्रमुख गैलरियों जैसे- गैलरी C, D, रीजनल आर्ट, कंटेम्पररी और डायस्पोरा गैलरी की प्रभारी हैं. रिसर्च, एग्जीबिशन, पब्लिकेशन, एजुकेशन प्रोग्राम, गाइडेड टूर, और टॉक शोज में सक्रिय भूमिका निभाते हुए उन्होंने संग्रहालय को आम लोगों से जोड़ा है. उनका मानना है कि संग्रहालय सिर्फ इतिहास का संग्रह नहीं, बल्कि समाज से संवाद का माध्यम है, और महिलाएं इस संवाद को नयी ऊर्जा दे रही हैं.
पटना संग्रहालय में रेनोवेशन प्रोजेक्ट पर वर्क कर रहीं स्वाति: स्वाति सिंह, क्यूरेटोरियल एसोसिएट, बिहार म्यूजियम
छपरा की मूल निवासी स्वाति सिंह, बिहार संग्रहालय में क्यूरेटोरियल एसोसिएट के पद पर कार्यरत हैं. उनका म्यूजियोलॉजी से जुड़ाव दिल्ली में टूरिज्म की पढ़ाई के दौरान हुआ, जब उन्हें जामिया मिलिया इस्लामिया में कॉमनवेल्थ प्रोजेक्ट के तहत संग्रहालयों का गहन अवलोकन करने का अवसर मिला. तभी से उनका रुझान आर्कियोलॉजी की ओर बढ़ा. नेशनल म्यूजियम इंस्टीट्यूट (अब इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हेरिटेज) से म्यूजियोलॉजी में मास्टर्स की डिग्री कर वर्ष 2013 में नेशनल म्यूजियम में आउटरीच इंटर्न बनीं और 2015 तक वहीं कार्यरत रहीं. 2015 में बिहार संग्रहालय से विजिटर सर्विसेस कोऑर्डिनेटर के रूप में जुड़ीं और 2022 में क्यूरेटोरियल एसोसिएट बनीं. वर्तमान में वह पटना संग्रहालय में रिनोवेशन प्रोजेक्ट के तहत राजेंद्र प्रसाद गैलरी, क्वाइन कलेक्शन और किड्स गैलरी पर कार्य कर रही हैं. उनका सफर दर्शाता है कि रुचि अगर जुनून बन जाये, तो राहें खुद बनती हैं.
3000 ऐतिहासिक वस्तुओं की क्यूरेशन में जुटी हैं विशी: डॉ विशी उपाध्याय,क्यूरेटर, बिहार म्यूजियम
आनंदपुरी, पटना की रहने वाली डॉ विशी उपाध्याय बिहार संग्रहालय में क्यूरेटर के पद पर कार्यरत हैं. नागपुर विश्वविद्यालय से एमए और पुरातत्व संस्थान से पुरातत्व एवं म्यूजियोलॉजी की पढ़ाई के दौरान ही उनका झुकाव इस क्षेत्र की ओर हुआ. विभिन्न संग्रहालयों का भ्रमण उनके लिए प्रेरणा का स्रोत बना. 2014 में बिहार संग्रहालय में चयन के बाद से वह लगभग 3000 ऐतिहासिक वस्तुओं की क्यूरेशन और संरक्षण में जुटी हैं. वह पटना संग्रहालय में विकसित हो रही तीन महत्वपूर्ण दीर्घाओं- ‘महापंडित राहुल सांकृत्यायन’ एवं ‘तिब्बती कला’, ‘धातु कला’ और ‘कथात्मक कला’ – की जिम्मेदारी संभाल रही हैं. इनका कार्य केवल संग्रह नहीं, बल्कि उन धरोहरों को समझकर, संरक्षित कर, जनमानस से जोड़ना भी है. वह संग्रहणीय वस्तुओं के वैज्ञानिक संरक्षण की निगरानी करती हैं और विशेषज्ञों के साथ मिलकर निर्णय लेती हैं. उनका समर्पण दर्शाता है कि संग्रहालय का कार्य केवल अतीत को संजोना नहीं, बल्कि उसे जीवंत बनाये रखना भी है.
कला संरक्षण परियोजनाओं पर कार्य कर रही रोहिणी: रोहिणी सिंह, रिसर्च असिस्टेंट कंजर्वेशन लैब बिहार म्यूजियम
छपरा की मूल निवासी रोहिणी सिंह, वर्तमान में गोला रोड, पटना में रह रही हैं और बिहार संग्रहालय की कंजर्वेशन लैब में रिसर्च असिस्टेंट के रूप में कार्यरत हैं. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व में स्नातक शिक्षा के दौरान उनकी सांस्कृतिक धरोहर में रुचि जागी. उन्होंने नेशनल म्यूजियम इंस्टीट्यूट, नोएडा से आर्ट कंजर्वेशन में मास्टर्स किया. इस दौरान उन्हें देश के प्रमुख संग्रहालयों और ऐतिहासिक स्थलों के संरक्षण कार्य को देखने व समझने का मौका मिला. वर्तमान में वे कला संरक्षण परियोजनाओं पर कार्य कर रही हैं, जहां कलाकृतियों की स्थिति का मूल्यांकन कर तय किया जाता है कि उन्हें प्रिवेंटिव या क्यूरेटिव कंजर्वेशन की आवश्यकता है. वह सीनियर कंजर्वेटर के मार्गदर्शन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हुए कार्य करती हैं. रोहिणी का कार्य यह दर्शाता है कि हर धरोहर के पीछे संवेदनशीलता, विशेषज्ञता और गहरी समझ छुपी होती है.
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