Khudabaksh Library: शोधकर्ताओं के लिए क्यों खजाना है खुदाबख्श लाइब्रेरी

Khudabaksh Library: आज स्थापना दिवस है बिहार की राजधानी पटना में स्थित खुदाबख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी का.यह विश्व की सबसे समृद्ध और प्रसिद्ध पुस्तकालयों में से एक है, जिसे तुर्की की लाइब्रेरी के बाद दूसरी सबसे बड़ी माना जाता है. 1891 में आम जनता के लिए खोली गयी यह लाइब्रेरी भारत के प्रमुख राष्ट्रीय पुस्तकालयों में शामिल है. यहां हजारों दुर्लभ पांडुलिपियों, ऐतिहासिक दस्तावेजों और मुि पुस्तकों का अनमोल संग्रह मौजूद है, जो इतिहास, साहित्य और संस्कृति के शोधकर्ताओं के लिए खजाना है, इसकी पहचान सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी है.

By Pratyush Prashant | August 2, 2025 10:46 AM
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Khudabaksh Library:(अनुपम कुमार) आज खुदाबख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी के स्थापना दिवस पर शनिवार को खुदाबख्श लाइब्रेरी में दो दिवसीय कार्यक्रम रखा गया है.इसमें पहले दिन पांडुलिपियों की प्रदर्शनी लगेगी.इसमें 100 पांडुलिपियां लगायी जायेगी.

तीन अगस्त 1908 को खुदाबख्श का निधन हुआ था.इसलिए इस अवसर पर उपस्थित लोग कुरान पढ़ेगे.कार्यक्रम के अंतिम सत्र में पैगंबर मोहम्मद साहब के जीवन और शिक्षा पर व्याख्यान का आयोजन होगा.

19वीं सदी की पांडुलिपि में कूफी में लिखी है कुरान की आयतें

हिरण के चमड़े पर लिखी 1200 वर्ष पुरानी पांडुलिपि और 400 वर्ष पुरानी प्रकाशित पुस्तक यदि देखनी हो तो आप खुदा बख्श लाइब्रेरी में आयें.यहां अंग्रेजी, उर्दू, फारसी, अरबी और तुर्की समेत एक दर्जन से अधिक भाषाओं में लिखी गयी 22 हजार मूल पांडुलिपि, तीन लाख से अधिक पुस्तक और 12 लाख पांडुलिपियों के डिजिटल फाइल में मौजूद हैं.

चार ऐसी मूल पांडुलिपि हैं जिन्हें संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार ने राष्ट्रीय धरोहर का दर्जा दिया हैं. इनमें 12 वीं शताब्दी में लिखी गयी किताब अल तसरीफ और किताब अल-हशाइश,15 वीं शताब्दी में लिखी गयी दीवाने हाफिज और 16 वी शताब्दी में लिखी गयी तारीख ए खानदाने तैमूरिया है.

साथ ही यहां भारतीय, मुगल, राजपूत, तंजोर, फारसी, अरब और तुर्की चित्रकला के उत्तम नमूने भी संरक्षित हैं. यहां देश के प्रतिष्ठित व्यक्तियों यथा जाने माने लेखकों, कवि और बुद्धिजीवियों दवारा लिखे गये 14 हजार से अधिक पत्र भी संजोए कर रखे गये हैं. इस लाइब्रेरी को तुर्की की लाइब्रेरी के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी लाइब्रेरी के तौर पर जाना जाता है.

एक हजार साल पुरानी अरब चित्रकला भी सुरक्षित

यहां मौजूद पेटिग्स में सबसे प्राचीन अरब चित्रकला की पेंटिंग है. यह एक हजार साल पुरानी है. सवित्र पांडुलिपियों में शाहनामा की कई पांडुलिपिया है. हिंद धर्म पर भागवत गीता, रामायण जैसे ग्रंथो की पांडुलिपियां भी हैं. तजावुर चित्रकला की श्री कृष्ण, विष्णु समेत 130 देवी- देवताओं के संग्रह वाले पांडुलिपि को भी रखा गया है.

शाहजहां ने लिखी है तहरीर

तारीख ए खानदाने तैमूरिया में तैमूर से अकबर के शासनकाल के 22 वें वर्ष तक का इतिहास विस्तार के साथ लिखा है. इसकी तहरीर शाहजहां ने अपने हाथों से लिखी है. इसमें 112 पेंटिंग है जिनमें हर चित्र में उसको बनाने वाले चित्रकार के नाम के साथ उसमें रंग भरने वाले कलाकार का नाम भी लिखा गया है.

किताब अल- तसरीफ सर्जरी पर दुनिया की पहली किताब

किताब अल तसरीफ में सर्जरी के बारे में विस्तृत विवरण दिया गया है और कई विद्वान उसे सर्जरी पर दुनिया की पहली किताब मानते हैं. किताब अल- हशाइश जीव विज्ञान पर आधारित है. दीवाने हाफिज में ईरान के फारसी शायर की रचनाओं का संग्रह है. इससे मुगल बादशाह शगुन निकाला करते थे. इसमें हुमायूं और जहांगीर की राइटिंग भी है जो सगुन निकालने के क्रम में यहाँ लिखी गयी है.

खुदाबख्श लाइब्रेरी में सोने के अक्षरों में लिखी तैमूर की जीवनी

खुदाबख्श लाइब्रेरी में अजायबुलमकदर सी अख़बारे तैमूर नामक पांडुलिपि भी है जिसमें तैमूर की जीवनी पूरी तरह सोने के अक्षरों में लिखी गयी है. पांच-छह सौ साल पुरानी पांडुलिपियों की स्थिति भी अच्छी शाहनामा, फतह अल हरमैन, खमसा निजामी, रांग रागिनी, गुलिस्ता, बोस्ता सहर अल- दयान, बरजू नामा, हमला हैदरी, कुल्लियाते सादी, हपत औरंग, कुरसी नामा समेत खुदा बख्श लाइब्रेरी में कई पांडुलिपियाँ है जो पांच-छह सौ साल या उससे भी पहले की है. इसके बावजूद ये अच्छी स्थिति में है और चित्र भी पूरी तरह से संरक्षित हैं. प्रमुख पांडुलिपियों में निजामी गजनवी की 550 साल पुरानी पांडुलिपि भी है.

वकील व न्यायाधीश थे खुदा बख्श

ख़ुदा बख्श अपने समय के एक जाने माने वकील थे जो लंबे समय तक पटना उच्च न्यायालय में न्यायाधीश भी रहे थे. 1895 से 98 तक तीन वर्ष वे निजाम की अदालत में मुख्य न्यायाधीश भी रह चुके थे. खुदा बख्श का पैतृक जिला सिवान था. उनके पिता मो. बख्श भी पटना उच्च न्यायालय के एक जाने माने वकील थे. उन्हें पुस्तक संग्रहित करने का शौक था और 1825 ई. में उन्होंने अपने निजी लाइब्रेरी की स्थापना की. बाद में उनके काम को ख़ुदा बख्या ने इतना आगे बढ़ाया कि यह आज दुनिया की नामी लाइब्रेरी हो चुकी है. खुदा बख्श का जन्म दो अगस्त 1842 ईस्वी में हुआ था और निधन तीन अगस्त 1908 में हुआ.

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