लालू यादव भी नहीं रहेंगे बहुत सक्रिय
कुल मिलाकर यह सभी वह नेता हैं, जिसने 90 की दशक में समाजवादी राजनीति को नयी जुबान दी और पहचान भी. इन नेताओं के जुमले अब किसी दूसरे की जुबान से ही सुनने को मिलेंगे. हालांकि यह संभव है कि लालू प्रसाद इस बार भी एकआध बार फिर सियासी मंच साझा करें. ऐसे में उनका वह अंदाज दखने को मिल जाए, जब वह सियासी मंच पर ‘लागललागल झुलनिया के धाका, बलम कलकात्ता चल गइले ‘ जैसे लोक रंग वाले गाने गा कर मतदाताओं को हुजूम को जोशीले ज्वार में तब्दील कर विरोधियों के खेमे में खलबली मचा दे.
रामविलास अक्सर ये बातें करते थे…
दिवंगत रामविलास पासवान के भाषण में भी कुछ ऐसी बातें होती थीं, जिन्हें वह लगभग सभी सभाओं में कहा करते थे. ”हम इस घर में दिया जलाने चले हैं, जहां सदियों से अंधेरा था. ”उस बाग का माली अच्छा होता है, जिसमें सभी तरह के फूल खिले”. बात साफ है कि ऐसे जमीनी नेताओं की आवाज से इस बार का लोकसभा चुनावों का मंच सूना -सूना नजर आयेगा.
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अभी भी निरंतर और दमदार हैं नीतीश कुमार
इकलौते नीतीश कुमार हैं, जिनकी आवाज में मतदाताओं को बांधने वाला जादू है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भाषणों में उनके अभी तक के काम और आगे के रचनात्मक कार्यों की झलक मिलती है. योजनाओं की गहन जानकारी और उनके सफल होने तक की कहानी जब सुनाते हैं, तो बिहार का मतदाता उनमें एक स्टेटमैन की छविदेखता है. जब वे बोलते हैं कि ‘आप तो जनबे करते हैं. हम तो हमेशा कुछ न कुछ करते ही रहते हैं.’